सूत्रपाहुड़ गाथा 4: Difference between revisions
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Latest revision as of 19:55, 3 November 2013
पुरिसो वि जो ससुत्ते ण विणांसइ सो गओ वि संसारे ।
सच्चेदण पच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि ॥४॥
पुरुषोऽपि य: ससूत्र: न विनश्यति स गतोऽपि संसारे ।
सच्चेतनप्रत्यक्षेण नाशयति तं स: अदृश्यमानोऽपि ॥४॥
आगे सूई के दृष्टान्त का दार्ष्टान्त कहते हैं -
अर्थ - जैसे सूत्रसहित सूई नष्ट नहीं होती है वैसे ही जो पुरुष संसार में गत हो रहा है, अपना रूप अपने दृष्टिगोचर नहीं है तो भी वह सूत्रसहित हो (सूत्र का ज्ञाता हो) तो उसके आत्मा सत्तरूप चैतन्य चमत्कारमयी स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष अनुभव में आता है, इसलिए गत नहीं है, नष्ट नहीं हुआ है, वह जिस संसार में गत है, उस संसार का नाश करता है ।
भावार्थ - - यद्यपि आत्मा इन्द्रियगोचर नहीं है तो भी सूत्र के ज्ञाता के स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से अनुभवगोचर है, वह सूत्र का ज्ञाता संसार का नाश करता है, आप प्रकट होता है, इसलिए सूई का दृष्टान्त युक्त है ॥४॥