संघ: Difference between revisions
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<p> रत्नत्रय से युक्त श्रमणों का समुदाय यह मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका के भेद से चार प्रकार का होता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.286, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.357 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> रत्नत्रय से युक्त श्रमणों का समुदाय यह मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका के भेद से चार प्रकार का होता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.286, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.357 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
संघ का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/6/13/331/12 रत्नत्रयोपेत: श्रमणगण: संघ:।
सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/9 चातुर्वर्णश्रमणनिबह: संघ:। =रत्नत्रय से युक्त श्रमणों का समुदाय संघ कहलाता है। ( राजवार्तिक/6/13/3/523 ) चार वर्णों के श्रमणों के समुदाय को संघ कहते हैं। ( राजवार्तिक/9/24/442/9 ); ( चारित्रसार/151/4 ); ( प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/249/343/10 )।
देखें वैयावृत्य - 2 आचार्य से लेकर गण पर्यंत सर्व साधुओं की व्याधि दूर करना संघ वैयावृत्य कहलाता है।
भावपाहुड़ टीका/78/225/1 ऋषिमुनियत्यनगारनिवह: संघ: अथवा ऋष्यार्यिकाश्रावकश्राविकानिवह: संघ:। =ऋषि, मुनि, यति और अनगार के समुदाय का नाम संघ है। अथवा ऋषि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका के समुदाय का नाम संघ है। (और भी देखें अगला शीर्षक )
* संघ के भेद - देखें इतिहास - 5।
1. एक मुनि को असंघपना हो जायेगा
राजवार्तिक/6/13/4/524/1 स्यादेतत् संघो गणो वृंदमित्यनर्थांतरं तस्य कथमेकस्मिन् वृत्तिरिति। तन्न्; किं कारणम् । अनेकव्रतगुण संहननादेकस्यापि संघत्वसिद्धे:। उक्तं च - संघो गुणसंघादो कम्माणविमोयदो हवदि संघो। दंसणणाणचरित्ते संघादितो हवदि संघो। = प्रश्न - संघ, गण और समुदाय ये एकार्थवाची हैं, तो इस कारण एक साधु को संघ कैसे कह सकते हैं। उत्तर - ऐसा नहीं है, क्योंकि एक व्यक्ति भी अनेक गुणव्रतादि का धारक होने से संघ कहा जाता है। कहा भी है - गुण संघात को संघ कहते हैं। कर्मों का नाश करने और दर्शन, ज्ञान और चारित्र का संघटन करने से एक साधु को भी संघ कहा जाता है।
पुराणकोष से
रत्नत्रय से युक्त श्रमणों का समुदाय यह मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका के भेद से चार प्रकार का होता है । पद्मपुराण 5.286, हरिवंशपुराण 60.357