संसारानुप्रेक्षा: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
देखें [[ अनुप्रेक्षा ]]। | देखें [[ अनुप्रेक्षा ]]। | ||
Line 12: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> बारह अनुप्रेक्षाओं में एक अनुप्रेक्षा । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप परिवर्तनों के कारण संसार दुःख रूप है ऐसी भावना करना संसारानुप्रेक्षा है । <span class="GRef"> महापुराण 11. 106, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.238-239, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 25.87-88, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.23-24 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> बारह अनुप्रेक्षाओं में एक अनुप्रेक्षा । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप परिवर्तनों के कारण संसार दुःख रूप है ऐसी भावना करना संसारानुप्रेक्षा है । <span class="GRef"> महापुराण 11. 106, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.238-239, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 25.87-88, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.23-24 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
देखें अनुप्रेक्षा ।
पुराणकोष से
बारह अनुप्रेक्षाओं में एक अनुप्रेक्षा । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप परिवर्तनों के कारण संसार दुःख रूप है ऐसी भावना करना संसारानुप्रेक्षा है । महापुराण 11. 106, पद्मपुराण 14.238-239, पांडवपुराण 25.87-88, वीरवर्द्धमान चरित्र 11.23-24