स्नातक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<p class="HindiText"> | <p class="HindiText"> | ||
<strong>1. स्नातक साधु का लक्षण</strong></p> | <strong>1. स्नातक साधु का लक्षण</strong></p> | ||
Line 21: | Line 22: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) साधु का एक भेद-घातिया कर्मों को नाश कर केवलज्ञान प्रकट करने वाले साधु । ये चार प्रकार के शुक्लध्यानों में उत्तरवर्ती दो परम शुक्लध्यानों के स्वामी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.120-188 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) साधु का एक भेद-घातिया कर्मों को नाश कर केवलज्ञान प्रकट करने वाले साधु । ये चार प्रकार के शुक्लध्यानों में उत्तरवर्ती दो परम शुक्लध्यानों के स्वामी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.120-188 </span></p> | ||
<p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.112 </span></p> | <p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.112 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
1. स्नातक साधु का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/9/46/460/11 प्रक्षीणघातिकर्माण: केवलिनो द्विविधा: स्नातका:। = जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया है, ऐसे दोनों प्रकार के केवली स्नातक कहलाते हैं। ( राजवार्तिक/9/46/5/636/3 ); ( चारित्रसार/102/2 )।
तत्त्वसार/8/24 तत: क्षीणचतुष्कर्माप्राप्तोऽथाख्यातसंयमम् । बीजबंधननिर्मुक्त: स्नातक:। = चारों घातियाकर्म नष्ट होते ही यथाख्यात संयम की प्राप्ति होती है। बीज के समान बंध का निर्मूल नाश होने से बंधन रहित हुए योगी स्नातक कहाने लगते हैं।
* स्नातक साधु संबंधी विषय-देखें साधु - 5।
पुराणकोष से
(1) साधु का एक भेद-घातिया कर्मों को नाश कर केवलज्ञान प्रकट करने वाले साधु । ये चार प्रकार के शुक्लध्यानों में उत्तरवर्ती दो परम शुक्लध्यानों के स्वामी होते हैं । महापुराण 21.120-188
(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.112