चारित्रपाहुड - गाथा 23: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:55, 17 May 2021
पंचेव पुव्वयाइं गुणव्वयायाइं हवंति तह तिण्णि ।
सिक्खावय चत्तारि य संजमचरणं च सायारं ।।23।।
(72) सागारसंयमाचरण में बारह व्रतों का निर्देश―इस संयमाचरण में 12 व्रत होते हैं―5 अणुव्रत, 3 गुणव्रत और 4 शिक्षाव्रत । सागार संयमाचरण में ये 12 व्रत हैं । 5 अणुव्रतों में (1) प्रथम नाम है अहिंसाणुव्रत (2) सत्याणुव्रत (3) अचौर्याणुव्रत (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत (5) परिग्रह परिमाणाणुव्रत । गुणव्रत में हैं दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदंड व्रत । शिक्षा व्रत में है सामायिक प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिमाण और अतिथिसम्विभाग । इन 12 व्रतों के कारण यह अव्रती कहलाता है । पर एक प्रश्न यहाँ होता है कि ये 12 हत दर्शनप्रतिमा में होते नहीं, फिर दर्शनप्रतिमा को सराग संयमाचरण में क्यों गिना । दर्शनप्रतिमा का अर्थ है निर्दोष सम्यग्दर्शन होना । तो सम्यक्त्वाचरण रहा आये पर सरागसंयमाचरण कैसे रहा? तो उत्तर उसका यह है कि यद्यपि दर्शन प्रतिमा में निरतिचार 12 व्रत नहीं होते । निरतिचार 5 अणुव्रत नहीं होते मगर 5 अणुव्रत की प्रवृत्ति रहती है । निरतिचार अणुव्रत न रहने से पहली प्रतिमा को महाव्रती नहीं कहा फिर भी 5 अणुव्रत की प्रवृत्ति होने से यह सराग संयमाचरण में लिया गया है, क्योंकि प्रथम प्रतिमा में अणुव्रत को चलता है मगर अतिचार सहित चलता है । व्रत तो वह कहलाता है जो निरतिचार चले । अतिचार मी चले और पालन करे तो उसे प्रतिमा नाम नहीं दिया जा सकता या प्रतिमारूप नहीं कहा जा सकता । तो अतिचार शब्द अयुक्त होने से पहिली प्रतिमा वाला व्रती नहीं लिया, अणुव्रत होने से उसको व्रती उपचार से कहते हैं । और सराग संयमाचरण तो उसके आ ही गया अतएव सराग संयमाचरण में दर्शन प्रतिमा आ ही गई । दर्शन प्रतिमा में मद्य मांस, मधु का निरतिचारत्याग है अर्थात् मद्य का भी दोष न लगे, इसी कारण तंबाकू जैसी चीज का भी यहाँ त्याग रहता है अर्थात् मांस का कोई दोष भी सूक्ष्म न लगना चाहिए । और इसी कारण भोजन करने की बात यहाँ आ जाती है । जिन जिन दिनों में आटा 7 दिन का कहा, 5 दिन का कहा, 3 दिन का कहा, ऐसे ही सब चीजों में मर्यादा सहित वह रसोई बनायेगा, खायेगा । मधुत्याग यह भी अतिचार दूर करके त्याग है और पंच उदंबर फलों का त्याग, 5 अणुव्रत की प्रवृत्ति, और जीवदया, जलगालन, रात्रिभोजन त्याग, देवदर्शन यह भी दर्शन प्रतिमा में नियत है । देवदर्शन का अर्थ है प्रभु का ज्ञान में अवलोकन करना । यदि कहीं मंदिर है तो वहाँ जाकर आराधना करें और कहीं मंदिर नहीं है, यात्रा में नहीं मिल रहा मंदिर तो वहाँ बड़े भक्तिभाव से वंदन करता, जाप करता, स्मरण करता है । तो इस प्रकार दर्शन प्रतिमा में अहिंसा का त्याग है और 7 व्यसनों का भी पूरे रूप से त्याग है । तो यह दर्शन प्रतिमा का धारण करने वाला जीव भी अणुव्रती कहलाता है । अब 5 अणुव्रत का स्वरूप बतलाते हैं ।