प्रकरणसम जाति: Difference between revisions
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<span class="GRef">न्या.सृ./मू. व टी./5/1/13/294</span> <span class="SanskritText">उभयसाध्यर्म्यात् प्रक्रियासिद्धेः प्रकरणसमः। 16। अनित्यशब्दः प्रयत्नानंतरीयकत्वाद् घटवदित्येकः पक्षं प्रवर्तयति द्वितीयश्च नित्यसाधर्म्यात्। एवं च सति प्रयत्नानंतरीयकत्वादिति हेतुरनित्य-साधर्म्येणोच्यमानेन हेतौ तदिदं प्रकरणानतिवृत्त्या प्रत्यवस्थानं प्रकरणसमः।</span> = <span class="HindiText">उभय के साधर्म्य से प्रक्रिया की सिद्धि हो जाने से प्रकरण समा जाति है। (कहीं-कहीं उभय के वैधर्म्य से भी प्रक्रिया की सिद्धि हो जाने के कारण प्रकरणसम जाति मानी जाती है।)। 16। जैसे - शब्द अनित्य है प्रयत्नानंतरीयकत्व से (प्रयत्न की समानता होने से) घट की नाई। इस रीति से एक पक्ष को प्रवृत्त करता है और दूसरा नित्य के साधर्म्य से शब्द को नित्य सिद्ध करता है ऐसा होने से प्रयत्नानंतरीयकत्व हेतु अनित्यत्व साधर्म्य से कथन करने पर प्रकरण की अनत्तिवृत्ति से प्रत्यवस्थान हुआ इसलिए ‘प्रकरणसम’ है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/4/ न्या./381-383/508-509</span>)। </span></p> | |||
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Revision as of 08:09, 16 July 2021
न्या.सृ./मू. व टी./5/1/13/294 उभयसाध्यर्म्यात् प्रक्रियासिद्धेः प्रकरणसमः। 16। अनित्यशब्दः प्रयत्नानंतरीयकत्वाद् घटवदित्येकः पक्षं प्रवर्तयति द्वितीयश्च नित्यसाधर्म्यात्। एवं च सति प्रयत्नानंतरीयकत्वादिति हेतुरनित्य-साधर्म्येणोच्यमानेन हेतौ तदिदं प्रकरणानतिवृत्त्या प्रत्यवस्थानं प्रकरणसमः। = उभय के साधर्म्य से प्रक्रिया की सिद्धि हो जाने से प्रकरण समा जाति है। (कहीं-कहीं उभय के वैधर्म्य से भी प्रक्रिया की सिद्धि हो जाने के कारण प्रकरणसम जाति मानी जाती है।)। 16। जैसे - शब्द अनित्य है प्रयत्नानंतरीयकत्व से (प्रयत्न की समानता होने से) घट की नाई। इस रीति से एक पक्ष को प्रवृत्त करता है और दूसरा नित्य के साधर्म्य से शब्द को नित्य सिद्ध करता है ऐसा होने से प्रयत्नानंतरीयकत्व हेतु अनित्यत्व साधर्म्य से कथन करने पर प्रकरण की अनत्तिवृत्ति से प्रत्यवस्थान हुआ इसलिए ‘प्रकरणसम’ है। ( श्लोकवार्तिक/4/ न्या./381-383/508-509)।