पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 142: Difference between revisions
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<p>संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । (142)</p> | <p>संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । (142)</p> | ||
<p>कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं ॥152॥</p> | <p>कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं ॥152॥</p> | ||
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Revision as of 11:38, 20 August 2021
संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । (142)
कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं ॥152॥