पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 166: Difference between revisions
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<p>धरिदुं जस्स ण सक्को चित्तंभामो बिणा दु अप्पाणं । (166)</p> | <p>धरिदुं जस्स ण सक्को चित्तंभामो बिणा दु अप्पाणं । (166)</p> | ||
<p>रोधो तस्स ण विज्जदि सुहासुहकदस्स कम्मस्स ॥176॥</p> | <p>रोधो तस्स ण विज्जदि सुहासुहकदस्स कम्मस्स ॥176॥</p> | ||
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Latest revision as of 10:55, 21 August 2021
धरिदुं जस्स ण सक्को चित्तंभामो बिणा दु अप्पाणं । (166)
रोधो तस्स ण विज्जदि सुहासुहकदस्स कम्मस्स ॥176॥