पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 140 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="AnvayArth">जस्स ण विज्जदि</span> जिनके नहीं है । वह क्या नहीं है ? <span class="AnvayArth">रागो दोसो मोहो</span> जीव के शुद्ध परिणाम-रूप परम धर्म लक्षण से विपरीत राग-द्वेष परिणाम या मोह परिणाम नहीं है । किन विषयों में ये नहीं हैं ? <span class="AnvayArth">सव्वदव्वेसु</span> सभी शुभाशुभ द्रव्यों में ये नहीं हैं । <span class="AnvayArth">णासवदि सुहं असुहं</span> शुभाशुभ कर्म आस्रवित नहीं होते हैं । किसके ये आस्रवित नहीं होते हैं ? <span class="AnvayArth">भिक्खुस्स</span> रागादि से रहित शुद्धोपयोग से सहित उन तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं । कैसे तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं ? <span class="AnvayArth">समसुहदुक्खस्स</span> समस्त शुभ-अशुभ संकल्प से रहित शुद्धात्मा के ध्यान से उत्पन्न परम सुखामृत की तृप्ति रूप एकाकार समरसी भाव के बल से सुख-दु:ख-रूप हर्ष-विषाद-मय विकार व्यक्त नहीं होने के कारण सुख-दु:ख में समभावी तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं ।</p> | ||
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<p>यहाँ शुभ-अशुभ के संवर में समर्थ शुद्धोपयोग भाव-संवर है और भाव-संवर के आधार से नवीन द्रव्य कर्मों का निरोध / नहीं आना द्रव्य-संवर है, ऐसा तात्पर्यार्थ है ॥१५०॥</p> | <p>यहाँ शुभ-अशुभ के संवर में समर्थ शुद्धोपयोग भाव-संवर है और भाव-संवर के आधार से नवीन द्रव्य कर्मों का निरोध / नहीं आना द्रव्य-संवर है, ऐसा तात्पर्यार्थ है ॥१५०॥</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
जस्स ण विज्जदि जिनके नहीं है । वह क्या नहीं है ? रागो दोसो मोहो जीव के शुद्ध परिणाम-रूप परम धर्म लक्षण से विपरीत राग-द्वेष परिणाम या मोह परिणाम नहीं है । किन विषयों में ये नहीं हैं ? सव्वदव्वेसु सभी शुभाशुभ द्रव्यों में ये नहीं हैं । णासवदि सुहं असुहं शुभाशुभ कर्म आस्रवित नहीं होते हैं । किसके ये आस्रवित नहीं होते हैं ? भिक्खुस्स रागादि से रहित शुद्धोपयोग से सहित उन तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं । कैसे तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं ? समसुहदुक्खस्स समस्त शुभ-अशुभ संकल्प से रहित शुद्धात्मा के ध्यान से उत्पन्न परम सुखामृत की तृप्ति रूप एकाकार समरसी भाव के बल से सुख-दु:ख-रूप हर्ष-विषाद-मय विकार व्यक्त नहीं होने के कारण सुख-दु:ख में समभावी तपोधन के वे आस्रवित नहीं होते हैं ।
यहाँ शुभ-अशुभ के संवर में समर्थ शुद्धोपयोग भाव-संवर है और भाव-संवर के आधार से नवीन द्रव्य कर्मों का निरोध / नहीं आना द्रव्य-संवर है, ऐसा तात्पर्यार्थ है ॥१५०॥