पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 15 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p>द्रव्यार्थिक-नय से सत् पदार्थ का विनाश नहीं है, असत् का उत्पाद नहीं है -- इसप्रकार के वचन द्वारा क्षणिक एकांत बौद्ध मत का निषेध करते हैं --</p> | <p>द्रव्यार्थिक-नय से सत् पदार्थ का विनाश नहीं है, असत् का उत्पाद नहीं है -- इसप्रकार के वचन द्वारा क्षणिक एकांत बौद्ध मत का निषेध करते हैं --</p> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चैव उप्पादो</span> जैसे गोरस का गोरस द्रव्य रूप से उत्पाद नहीं है, विनाश भी नहीं है, <span class="AnvayArth">गुणपज्जएसु भावा उप्पादवये पकुव्वंति</span> तथापि परिणामी में वर्ण, रस, गंध, स्पर्शरूप गुणों में अन्य वर्ण, रस, गंधादि रूप में नवनीत (मक्खन) पर्याय नष्ट होती है और घृत (घी) पर्याय उत्पन्न होती है; उसीप्रकार सत् / विद्यमान भाव / पदार्थ रूप जीवादि द्रव्य का द्रव्यार्थिक-नय की अपेक्षा द्रव्यत्व-रूप से विनाश नहीं है, असत् / अविद्यमान भाव / पदार्थ-रूप जीवादि द्रव्य का द्रव्यार्थिक-नय की अपेक्षा उत्पाद नहीं है; तथापि भाव पदार्थमयी जीवादि छह द्रव्यरूप कर्ता अधिकरणभूत गुण-पर्यायों में पर्यायार्थिक-नय की अपेक्षा विवक्षित मनुष्य, नारक आदि; द्वयणुक आदि, गति-स्थिति-अवगाहन-वर्तनादि रूप से यथासंभव उत्पाद-व्यय करते हैं ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>यहाँ छह द्रव्यों में से शुद्ध पारिणामिक परमभाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक-नय अथवा निश्चय-नय की अपेक्षा क्रोध, मान, माया, लोभ, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, भोगाकांक्षा रूप निदान बंधादि परभावों से शून्य होने पर भी उत्पाद-व्यय से रहित, आदि-अंत से रहित चिदानंद एक स्वभाव से भरितावस्थ (परिपूर्ण) जीवास्तिकाय नामक शुद्धात्म-द्रव्य ध्यान करने योग्य है, ऐसा अभिप्राय है ॥१५॥</p> | <p>यहाँ छह द्रव्यों में से शुद्ध पारिणामिक परमभाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक-नय अथवा निश्चय-नय की अपेक्षा क्रोध, मान, माया, लोभ, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, भोगाकांक्षा रूप निदान बंधादि परभावों से शून्य होने पर भी उत्पाद-व्यय से रहित, आदि-अंत से रहित चिदानंद एक स्वभाव से भरितावस्थ (परिपूर्ण) जीवास्तिकाय नामक शुद्धात्म-द्रव्य ध्यान करने योग्य है, ऐसा अभिप्राय है ॥१५॥</p> |
Revision as of 16:51, 24 August 2021
द्रव्यार्थिक-नय से सत् पदार्थ का विनाश नहीं है, असत् का उत्पाद नहीं है -- इसप्रकार के वचन द्वारा क्षणिक एकांत बौद्ध मत का निषेध करते हैं --
भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चैव उप्पादो जैसे गोरस का गोरस द्रव्य रूप से उत्पाद नहीं है, विनाश भी नहीं है, गुणपज्जएसु भावा उप्पादवये पकुव्वंति तथापि परिणामी में वर्ण, रस, गंध, स्पर्शरूप गुणों में अन्य वर्ण, रस, गंधादि रूप में नवनीत (मक्खन) पर्याय नष्ट होती है और घृत (घी) पर्याय उत्पन्न होती है; उसीप्रकार सत् / विद्यमान भाव / पदार्थ रूप जीवादि द्रव्य का द्रव्यार्थिक-नय की अपेक्षा द्रव्यत्व-रूप से विनाश नहीं है, असत् / अविद्यमान भाव / पदार्थ-रूप जीवादि द्रव्य का द्रव्यार्थिक-नय की अपेक्षा उत्पाद नहीं है; तथापि भाव पदार्थमयी जीवादि छह द्रव्यरूप कर्ता अधिकरणभूत गुण-पर्यायों में पर्यायार्थिक-नय की अपेक्षा विवक्षित मनुष्य, नारक आदि; द्वयणुक आदि, गति-स्थिति-अवगाहन-वर्तनादि रूप से यथासंभव उत्पाद-व्यय करते हैं ।
यहाँ छह द्रव्यों में से शुद्ध पारिणामिक परमभाव ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक-नय अथवा निश्चय-नय की अपेक्षा क्रोध, मान, माया, लोभ, दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, भोगाकांक्षा रूप निदान बंधादि परभावों से शून्य होने पर भी उत्पाद-व्यय से रहित, आदि-अंत से रहित चिदानंद एक स्वभाव से भरितावस्थ (परिपूर्ण) जीवास्तिकाय नामक शुद्धात्म-द्रव्य ध्यान करने योग्य है, ऐसा अभिप्राय है ॥१५॥
इसप्रकार द्वितीय सप्तक में से प्रथम स्थल में बौद्ध के प्रति द्रव्य की स्थापना करने के लिए गाथा पूर्ण हुई ।