पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 35 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब सिद्ध के कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य-कारण-भाव साधते हैं --</p> | <p>अब सिद्ध के कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य-कारण-भाव साधते हैं --</p> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">कदाचिवि उप्पण्णो</span> संसारी जीव के समान नर-नारकादि रूप से किसी भी समय उत्पन्न नहीं होते हैं, <span class="AnvayArth">जम्हा</span> जिसकारण; <span class="AnvayArth">कज्जं ण तेण सो सिद्धो</span> उस कारण से कर्म नोकर्म की अपेक्षा वे सिद्ध कार्य नहीं हैं । <span class="AnvayArth">उप्पादेदि ण किंचिवि</span> स्वयं कर्म-नोकर्म-रूप कुछ भी उत्पन्न नहीं करते हैं; <span class="AnvayArth">कारणमिह तेण ण स होहि</span> उस कारण वे सिद्ध इस जगत में कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कारण भी नहीं हैं ।</p> | ||
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<p>इस गाथा-सूत्र में जो शुद्ध निश्चय से कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य और कारण नहीं हैं; कर्मोदय से उत्पन्न नवीन कर्मों को ग्रहण करने में कारणभूत मन-वचन-काय व्यापार से निवृत्ति के समय, अनन्त-ज्ञानादि सहित वे सिद्ध ही साक्षात उपादेय हैं -- ऐसा तात्पर्य है ॥३६॥</p> | <p>इस गाथा-सूत्र में जो शुद्ध निश्चय से कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य और कारण नहीं हैं; कर्मोदय से उत्पन्न नवीन कर्मों को ग्रहण करने में कारणभूत मन-वचन-काय व्यापार से निवृत्ति के समय, अनन्त-ज्ञानादि सहित वे सिद्ध ही साक्षात उपादेय हैं -- ऐसा तात्पर्य है ॥३६॥</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
अब सिद्ध के कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य-कारण-भाव साधते हैं --
कदाचिवि उप्पण्णो संसारी जीव के समान नर-नारकादि रूप से किसी भी समय उत्पन्न नहीं होते हैं, जम्हा जिसकारण; कज्जं ण तेण सो सिद्धो उस कारण से कर्म नोकर्म की अपेक्षा वे सिद्ध कार्य नहीं हैं । उप्पादेदि ण किंचिवि स्वयं कर्म-नोकर्म-रूप कुछ भी उत्पन्न नहीं करते हैं; कारणमिह तेण ण स होहि उस कारण वे सिद्ध इस जगत में कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कारण भी नहीं हैं ।
इस गाथा-सूत्र में जो शुद्ध निश्चय से कर्म-नोकर्म की अपेक्षा कार्य और कारण नहीं हैं; कर्मोदय से उत्पन्न नवीन कर्मों को ग्रहण करने में कारणभूत मन-वचन-काय व्यापार से निवृत्ति के समय, अनन्त-ज्ञानादि सहित वे सिद्ध ही साक्षात उपादेय हैं -- ऐसा तात्पर्य है ॥३६॥