पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 43 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p>अब द्रव्य का गुणों से सर्वथा प्रदेशास्तित्व रूप भेद होने पर तथा गुणों का द्रव्य से भेद होने पर दोष दिखाते हैं--</p> | <p>अब द्रव्य का गुणों से सर्वथा प्रदेशास्तित्व रूप भेद होने पर तथा गुणों का द्रव्य से भेद होने पर दोष दिखाते हैं--</p> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">जदि हवदि दव्वदमण्णं</span> यदि द्रव्य अन्य है। किससे अन्य है? <span class="AnvayArth">गुणदो</span> गुणों से अन्य है । <span class="AnvayArth">गुणा य दव्वदो अण्णे</span> और यदि गुण द्रव्य से अन्य, भिन्न हैं; तब क्या दोष होगा? <span class="AnvayArth">दव्वाणंतियं</span> गुणों से द्रव्य का भेद होने पर एक द्रव्य के ही अनन्तता प्राप्त होती है; <span class="AnvayArth">अहवा दव्वाभावं पकुव्वंति</span> अथवा यदि द्रव्य से गुण भिन्न होते हैं तो द्रव्य का अभाव हो जाता है ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>वह इसप्रकार -- गुण आश्रय सहित हैं या आश्रय रहित हैं । आश्रय सहित के पक्ष में दोष देते हैं -- अनन्त ज्ञानादि गुण किसी शुद्धात्म-द्रव्य में समाश्रित हैं । जिस आत्मद्रव्य में वे समाश्रित हैं, वह यदि गुणों से भिन्न हो गया तो वे और किसी दूसरे जीव द्रव्य में समाश्रित होंगे; वह भी यदि गुणों से भिन्न हो गया तो पुनरपि वे किसी अन्य आत्म-द्रव्य में समाश्रित होंगे इसप्रकार शुद्धात्म-द्रव्य में अनंत ज्ञानादि गुणों का भेद होने पर (एक ही) शुद्धात्म-द्रव्य के अनन्तता आ जाएगी ।</p> | <p>वह इसप्रकार -- गुण आश्रय सहित हैं या आश्रय रहित हैं । आश्रय सहित के पक्ष में दोष देते हैं -- अनन्त ज्ञानादि गुण किसी शुद्धात्म-द्रव्य में समाश्रित हैं । जिस आत्मद्रव्य में वे समाश्रित हैं, वह यदि गुणों से भिन्न हो गया तो वे और किसी दूसरे जीव द्रव्य में समाश्रित होंगे; वह भी यदि गुणों से भिन्न हो गया तो पुनरपि वे किसी अन्य आत्म-द्रव्य में समाश्रित होंगे इसप्रकार शुद्धात्म-द्रव्य में अनंत ज्ञानादि गुणों का भेद होने पर (एक ही) शुद्धात्म-द्रव्य के अनन्तता आ जाएगी ।</p> |
Revision as of 16:51, 24 August 2021
अब द्रव्य का गुणों से सर्वथा प्रदेशास्तित्व रूप भेद होने पर तथा गुणों का द्रव्य से भेद होने पर दोष दिखाते हैं--
जदि हवदि दव्वदमण्णं यदि द्रव्य अन्य है। किससे अन्य है? गुणदो गुणों से अन्य है । गुणा य दव्वदो अण्णे और यदि गुण द्रव्य से अन्य, भिन्न हैं; तब क्या दोष होगा? दव्वाणंतियं गुणों से द्रव्य का भेद होने पर एक द्रव्य के ही अनन्तता प्राप्त होती है; अहवा दव्वाभावं पकुव्वंति अथवा यदि द्रव्य से गुण भिन्न होते हैं तो द्रव्य का अभाव हो जाता है ।
वह इसप्रकार -- गुण आश्रय सहित हैं या आश्रय रहित हैं । आश्रय सहित के पक्ष में दोष देते हैं -- अनन्त ज्ञानादि गुण किसी शुद्धात्म-द्रव्य में समाश्रित हैं । जिस आत्मद्रव्य में वे समाश्रित हैं, वह यदि गुणों से भिन्न हो गया तो वे और किसी दूसरे जीव द्रव्य में समाश्रित होंगे; वह भी यदि गुणों से भिन्न हो गया तो पुनरपि वे किसी अन्य आत्म-द्रव्य में समाश्रित होंगे इसप्रकार शुद्धात्म-द्रव्य में अनंत ज्ञानादि गुणों का भेद होने पर (एक ही) शुद्धात्म-द्रव्य के अनन्तता आ जाएगी ।
जिस प्रकार उपादेय-भूत परमात्म-द्रव्य में गुण-गुणी का भेद होने पर द्रव्य की अनन्तता का व्याख्यान किया; उसी प्रकार हेयभूत अशुद्ध जीव-द्रव्य में भी तथा पुद्गलादि में भी लगा लेना चाहिए । अथवा गुण-गुणी भेद का एकान्त होने पर, विवक्षित-अविवक्षित एक-एक गुण का विवक्षित-अविवक्षित एक-एक द्रव्य आधार होने पर द्रव्य के अनन्तता होती है ।
अब, द्रव्य के आश्रय से रहित भिन्न गुणों के भेद में द्रव्य का अभाव कहते हैं -- गुणों का समुदाय द्रव्य कहलाता है । गुण समुदाय रूप द्रव्य से गुणों का एकान्त (सर्वथा) भेद होने पर गुण-समुदाय-रूप द्रव्य कहाँ रहा ? कहीं भी नहीं -- यह भावार्थ है ॥५०॥