पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 56 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><span class="AnvayArth">कम्मं वेदयमाणो</span> कर्म का वेदन करता हुआ, नीराग निर्भर आनन्द लक्षण प्रचंड अखंड ज्ञान-काण्ड-रूप से परिणत आत्म-भावना से रहित और मन-वचन-काय के व्यापार-रूप कर्म-काण्ड से परिणत होने के कारण पहले उपार्जित जो ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्म, उनके उदयागत का व्यवहार से वेदन करता हुआ; वह कौन वेदन करता हुआ ? <span class="AnvayArth">जीवो</span> जीव-रूप कर्ता वेदन करता हुआ; <span class="AnvayArth">भावं करेदि जारिसयं</span> जैसे परिणाम को करता है । <span class="AnvayArth">सो तस्स तेण कत्ता</span> वह उसका उस रूप में कर्ता है । वह जीव कर्मता को प्राप्त उस रागादि परिणाम का, अशुद्ध निश्चय की अपेक्षा करणभूत उस ही भाव से कर्ता <span class="AnvayArth">हवदित्ति य सासणे पढिदं</span> होता है, ऐसा शासन में, परमागम में पढ़ा गया है, कहा गया है -- ऐसा अभिप्राय है ॥६३॥</p> | <p><span class="AnvayArth">[कम्मं वेदयमाणो]</span> कर्म का वेदन करता हुआ, नीराग निर्भर आनन्द लक्षण प्रचंड अखंड ज्ञान-काण्ड-रूप से परिणत आत्म-भावना से रहित और मन-वचन-काय के व्यापार-रूप कर्म-काण्ड से परिणत होने के कारण पहले उपार्जित जो ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्म, उनके उदयागत का व्यवहार से वेदन करता हुआ; वह कौन वेदन करता हुआ ? <span class="AnvayArth">[जीवो]</span> जीव-रूप कर्ता वेदन करता हुआ; <span class="AnvayArth">[भावं करेदि जारिसयं]</span> जैसे परिणाम को करता है । <span class="AnvayArth">[सो तस्स तेण कत्ता]</span> वह उसका उस रूप में कर्ता है । वह जीव कर्मता को प्राप्त उस रागादि परिणाम का, अशुद्ध निश्चय की अपेक्षा करणभूत उस ही भाव से कर्ता <span class="AnvayArth">[हवदित्ति य सासणे पढिदं]</span> होता है, ऐसा शासन में, परमागम में पढ़ा गया है, कहा गया है -- ऐसा अभिप्राय है ॥६३॥</p> | ||
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<p>स्व-शुद्धात्मा की भावना से च्युत होता हुआ जीव निश्चय से कर्म-जनित रागादि विभावों का कर्ता-भोक्ता होता है -- ऐसे व्याख्यान की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुई ।</p> | <p>स्व-शुद्धात्मा की भावना से च्युत होता हुआ जीव निश्चय से कर्म-जनित रागादि विभावों का कर्ता-भोक्ता होता है -- ऐसे व्याख्यान की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुई ।</p> | ||
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Revision as of 17:06, 24 August 2021
[कम्मं वेदयमाणो] कर्म का वेदन करता हुआ, नीराग निर्भर आनन्द लक्षण प्रचंड अखंड ज्ञान-काण्ड-रूप से परिणत आत्म-भावना से रहित और मन-वचन-काय के व्यापार-रूप कर्म-काण्ड से परिणत होने के कारण पहले उपार्जित जो ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्म, उनके उदयागत का व्यवहार से वेदन करता हुआ; वह कौन वेदन करता हुआ ? [जीवो] जीव-रूप कर्ता वेदन करता हुआ; [भावं करेदि जारिसयं] जैसे परिणाम को करता है । [सो तस्स तेण कत्ता] वह उसका उस रूप में कर्ता है । वह जीव कर्मता को प्राप्त उस रागादि परिणाम का, अशुद्ध निश्चय की अपेक्षा करणभूत उस ही भाव से कर्ता [हवदित्ति य सासणे पढिदं] होता है, ऐसा शासन में, परमागम में पढ़ा गया है, कहा गया है -- ऐसा अभिप्राय है ॥६३॥
स्व-शुद्धात्मा की भावना से च्युत होता हुआ जीव निश्चय से कर्म-जनित रागादि विभावों का कर्ता-भोक्ता होता है -- ऐसे व्याख्यान की मुख्यता से गाथा पूर्ण हुई ।