जिनकल्प: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
Line 3: | Line 3: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> जिनकल्प साधु का स्वरूप</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> जिनकल्प साधु का स्वरूप</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/155/356/17 </span><span class="SanskritText">जिनकल्पो निरूप्यते–जितरागद्वेषमोहा उपसर्गपरीषहारिवेगसहा:, जिना इव विहरंति इति जिनकल्पिका एक एवेत्यतिशयो जिनकल्पितकानाम् । इतरो लिंगादिराचार: प्रायेण व्याबर्णितरूप एव। </span>=<span class="HindiText">जिन्होंने राग-द्वेष और मोह को जीत लिया है, उपसर्ग और परीषहरूपी शत्रु के वेग को जो सहते हैं, और जो जिनेंद्र भगवान् के समान विहार करते हैं, ऐसे मुनियों को जिनकल्पी मुनि कहते हैं। इतनी ही विशेषता इन मुनियों में रहती है। बाकी सब लिंगादि आचार प्राय: जैसा पूर्व में वर्णन किया है, वैसा ही इनका भी समझना चाहिए। (अर्थात् अठ्ठाईस मूल गुण आदि का पालन ये भी अन्य साधुओंवत् करते हैं।) (और भी–देखें [[ | <span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/155/356/17 </span><span class="SanskritText">जिनकल्पो निरूप्यते–जितरागद्वेषमोहा उपसर्गपरीषहारिवेगसहा:, जिना इव विहरंति इति जिनकल्पिका एक एवेत्यतिशयो जिनकल्पितकानाम् । इतरो लिंगादिराचार: प्रायेण व्याबर्णितरूप एव। </span>=<span class="HindiText">जिन्होंने राग-द्वेष और मोह को जीत लिया है, उपसर्ग और परीषहरूपी शत्रु के वेग को जो सहते हैं, और जो जिनेंद्र भगवान् के समान विहार करते हैं, ऐसे मुनियों को जिनकल्पी मुनि कहते हैं। इतनी ही विशेषता इन मुनियों में रहती है। बाकी सब लिंगादि आचार प्राय: जैसा पूर्व में वर्णन किया है, वैसा ही इनका भी समझना चाहिए। (अर्थात् अठ्ठाईस मूल गुण आदि का पालन ये भी अन्य साधुओंवत् करते हैं।) (और भी–देखें [[ एकल विहारी ]])।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जिनकल्पी साधु उत्तम संहनन व सामायिक चारित्र वाला ही होता है</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जिनकल्पी साधु उत्तम संहनन व सामायिक चारित्र वाला ही होता है</strong></span><br /> |
Revision as of 21:49, 19 March 2022
सिद्धांतकोष से
- जिनकल्प साधु का स्वरूप
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/155/356/17 जिनकल्पो निरूप्यते–जितरागद्वेषमोहा उपसर्गपरीषहारिवेगसहा:, जिना इव विहरंति इति जिनकल्पिका एक एवेत्यतिशयो जिनकल्पितकानाम् । इतरो लिंगादिराचार: प्रायेण व्याबर्णितरूप एव। =जिन्होंने राग-द्वेष और मोह को जीत लिया है, उपसर्ग और परीषहरूपी शत्रु के वेग को जो सहते हैं, और जो जिनेंद्र भगवान् के समान विहार करते हैं, ऐसे मुनियों को जिनकल्पी मुनि कहते हैं। इतनी ही विशेषता इन मुनियों में रहती है। बाकी सब लिंगादि आचार प्राय: जैसा पूर्व में वर्णन किया है, वैसा ही इनका भी समझना चाहिए। (अर्थात् अठ्ठाईस मूल गुण आदि का पालन ये भी अन्य साधुओंवत् करते हैं।) (और भी–देखें एकल विहारी )।
- जिनकल्पी साधु उत्तम संहनन व सामायिक चारित्र वाला ही होता है
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/547/714/5 श्रीवर्द्धमानस्वामिना प्राक्तनोत्तमसंहननजिनकल्पचारणपरिणतेषु तदेकधा चारित्रम् ।=श्री वर्द्धमानस्वामी से पहिले उत्तम संहनन के धारी जिनकल्प आचरणरूप परिणते मुनि तिनके सामायिकरूप एक ही चारित्र कहा है।
पुराणकोष से
(1) आत्म-चिंतन के लिए एकाकी विहार करने वाले मुनि । महापुराण 20.170
(2) इस नाम का एक सामायिक चारित्र । महापुराण 34.130