कर्मभूमि: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> वृषभदेव ने कृषि आदि छ: कर्मों की व्यवस्था इस भरतक्षेत्र की भूमि में की थी । यह भूमि इसी नाम से विख्यात है । <span class="GRef"> महापुराण 16.2249, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.112 < | <span class="HindiText"> वृषभदेव ने कृषि आदि छ: कर्मों की व्यवस्था इस भरतक्षेत्र की भूमि में की थी । यह भूमि इसी नाम से विख्यात है । <span class="GRef"> महापुराण 16.2249, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.112 <span class="HindiText"> यहाँ उत्पन्न मनुष्य अपनी-अपनी वृत्ति की विशेषता से तीन प्रकार के होते हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । इनमें शलाकापुरुष, कामदेव, विद्याधर और देवार्चित संत ये उत्तम मनुष्य तथा छठे काल के मनुष्य जघन्य और इन दोनों के बीच के मनुष्य मध्यम हैं । <span class="GRef"> महापुराण 76.500-502 </span>अढ़ाई द्वीप संबंधी कर्मभूमियाँ पंद्रह होती है । देवकुरु और उत्तरकुरु सहित विदेह, भरत तथा ऐरावत क्षेत्रों में इन कर्मभूमियों की संख्या 15 है― 5 विदेह क्षेत्र में, 5 भरत क्षेत्र में और 5 ऐरावत क्षेत्र में । <span class="GRef"> पद्मपुराण 89.106,105.162 </span> | ||
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Revision as of 15:13, 18 July 2022
वृषभदेव ने कृषि आदि छ: कर्मों की व्यवस्था इस भरतक्षेत्र की भूमि में की थी । यह भूमि इसी नाम से विख्यात है । महापुराण 16.2249, हरिवंशपुराण 3.112 यहाँ उत्पन्न मनुष्य अपनी-अपनी वृत्ति की विशेषता से तीन प्रकार के होते हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । इनमें शलाकापुरुष, कामदेव, विद्याधर और देवार्चित संत ये उत्तम मनुष्य तथा छठे काल के मनुष्य जघन्य और इन दोनों के बीच के मनुष्य मध्यम हैं । महापुराण 76.500-502 अढ़ाई द्वीप संबंधी कर्मभूमियाँ पंद्रह होती है । देवकुरु और उत्तरकुरु सहित विदेह, भरत तथा ऐरावत क्षेत्रों में इन कर्मभूमियों की संख्या 15 है― 5 विदेह क्षेत्र में, 5 भरत क्षेत्र में और 5 ऐरावत क्षेत्र में । पद्मपुराण 89.106,105.162