क्रियाकलाप ग्रंथ: Difference between revisions
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साधुओं के नित्य व नैमित्तिक प्रतिक्रमणादि क्रियाकर्म संबंधी विषयों का प्रतिपादक एक संग्रह ग्रंथ है। यह पं पन्नालालजी सोनी ने किया है। इस ग्रंथ के प्रथम अध्याय का संग्रह तो पंडितजी का अपना किया हुआ है और शेष संग्रह काफी प्राचीन है। संभवत: इसके संग्रहकर्ता पं. प्रभाचंद हैं (ई.श. 14-17)। उनके अनुसार इस ग्रंथ में संग्रहीत सर्वत्र प्राकृत भक्ति पाठ तो आ. कुंदकुंद के हैं और संस्कृत भक्ति पाठ आ॰ पूज्यपाद के हैं। शेष भक्तियें भी वि॰ 14 वीं शताब्दी के पूर्व कभी लिखी गयी हैं। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/ </span>प्र.88/पं॰फूलचंद)। | <span class="HindiText"> साधुओं के नित्य व नैमित्तिक प्रतिक्रमणादि क्रियाकर्म संबंधी विषयों का प्रतिपादक एक संग्रह ग्रंथ है। यह पं पन्नालालजी सोनी ने किया है। इस ग्रंथ के प्रथम अध्याय का संग्रह तो पंडितजी का अपना किया हुआ है और शेष संग्रह काफी प्राचीन है। संभवत: इसके संग्रहकर्ता पं. प्रभाचंद हैं (ई.श. 14-17)। उनके अनुसार इस ग्रंथ में संग्रहीत सर्वत्र प्राकृत भक्ति पाठ तो आ. कुंदकुंद के हैं और संस्कृत भक्ति पाठ आ॰ पूज्यपाद के हैं। शेष भक्तियें भी वि॰ 14 वीं शताब्दी के पूर्व कभी लिखी गयी हैं। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/ </span>प्र.88/पं॰फूलचंद)। | ||
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Revision as of 12:56, 20 July 2022
साधुओं के नित्य व नैमित्तिक प्रतिक्रमणादि क्रियाकर्म संबंधी विषयों का प्रतिपादक एक संग्रह ग्रंथ है। यह पं पन्नालालजी सोनी ने किया है। इस ग्रंथ के प्रथम अध्याय का संग्रह तो पंडितजी का अपना किया हुआ है और शेष संग्रह काफी प्राचीन है। संभवत: इसके संग्रहकर्ता पं. प्रभाचंद हैं (ई.श. 14-17)। उनके अनुसार इस ग्रंथ में संग्रहीत सर्वत्र प्राकृत भक्ति पाठ तो आ. कुंदकुंद के हैं और संस्कृत भक्ति पाठ आ॰ पूज्यपाद के हैं। शेष भक्तियें भी वि॰ 14 वीं शताब्दी के पूर्व कभी लिखी गयी हैं। ( सर्वार्थसिद्धि/ प्र.88/पं॰फूलचंद)।