काससौकरिक: Difference between revisions
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< | <span class="HindiText"> यह पूर्वभव में मनुष्य आयु को बाँधकर नीच गोत्र के उदय से राजगृह नगर में नीचकुल में उत्पन्न हुआ था । इसके संबंध में गौतम गणधर ने श्रेणिक से कहा था कि इसे जातिस्मरण हुआ है, अत: यह विचार में लगा है कि यदि पुण्य-पाप के फल से जीवों का संबंध होता है तो पुण्य के बिना इसने मनुष्य-जन्म कैसे प्राप्त कर लिया । इसलिए न पुण्य है, न पाप । इंद्रियों के विषय से उत्पन्न हुआ वैषयिक सुख ही कल्याण कारक है ऐसा मानकर यह पापात्मा निःशंक होकर हिंसा आदि पाँचों पापों को करने से नरकायु का बंध हो जाने के कारण जीवन के अंत में सातवें नरक में जायेगा । <span class="GRef"> महापुराण 74.454-460, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.159-166 </span> | ||
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Revision as of 15:57, 25 July 2022
यह पूर्वभव में मनुष्य आयु को बाँधकर नीच गोत्र के उदय से राजगृह नगर में नीचकुल में उत्पन्न हुआ था । इसके संबंध में गौतम गणधर ने श्रेणिक से कहा था कि इसे जातिस्मरण हुआ है, अत: यह विचार में लगा है कि यदि पुण्य-पाप के फल से जीवों का संबंध होता है तो पुण्य के बिना इसने मनुष्य-जन्म कैसे प्राप्त कर लिया । इसलिए न पुण्य है, न पाप । इंद्रियों के विषय से उत्पन्न हुआ वैषयिक सुख ही कल्याण कारक है ऐसा मानकर यह पापात्मा निःशंक होकर हिंसा आदि पाँचों पापों को करने से नरकायु का बंध हो जाने के कारण जीवन के अंत में सातवें नरक में जायेगा । महापुराण 74.454-460, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.159-166