कुमुदा: Difference between revisions
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<span class="HindiText"> पूर्व विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित दक्षिणोत्तर लंबे आठ देशों में सातवाँ देश । अशोका नगरी इसकी राजधानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 208-216, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.249-250, 261-262 </span></br><span class="HindiText">(2) सुमेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशावर्ती चार वापियों में एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.345-346 </span></br><span class="HindiText">(3) नंदीश्वर द्वीप के पश्चिम दिशा में स्थित अंजनगिरि की चारों दिशाओं में स्थित चार वापियों में तीसरी वापी, धरण देव की क्रीड़ाभूमि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.662-663 </span></br><span class="HindiText">(4) समवसरण के चंपकवन की छ: वापियों में प्रथम वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.34 </span> | <span class="HindiText"> (1)पूर्व विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित दक्षिणोत्तर लंबे आठ देशों में सातवाँ देश । अशोका नगरी इसकी राजधानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 208-216, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.249-250, 261-262 </span></br><span class="HindiText">(2) सुमेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशावर्ती चार वापियों में एक वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.345-346 </span></br><span class="HindiText">(3) नंदीश्वर द्वीप के पश्चिम दिशा में स्थित अंजनगिरि की चारों दिशाओं में स्थित चार वापियों में तीसरी वापी, धरण देव की क्रीड़ाभूमि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.662-663 </span></br><span class="HindiText">(4) समवसरण के चंपकवन की छ: वापियों में प्रथम वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.34 </span> | ||
Revision as of 22:07, 27 July 2022
सिद्धांतकोष से
सुमेरु पर्वत के नंदनादि वनों में स्थित एक वापी–देखें लोक - 5.6।
पुराणकोष से
(1)पूर्व विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी और निषध पर्वत के मध्य स्थित दक्षिणोत्तर लंबे आठ देशों में सातवाँ देश । अशोका नगरी इसकी राजधानी थी । महापुराण 63. 208-216, हरिवंशपुराण 5.249-250, 261-262
(2) सुमेरु पर्वत की उत्तर-पूर्व (ऐशान) दिशावर्ती चार वापियों में एक वापी । हरिवंशपुराण 5.345-346
(3) नंदीश्वर द्वीप के पश्चिम दिशा में स्थित अंजनगिरि की चारों दिशाओं में स्थित चार वापियों में तीसरी वापी, धरण देव की क्रीड़ाभूमि । हरिवंशपुराण 5.662-663
(4) समवसरण के चंपकवन की छ: वापियों में प्रथम वापी । हरिवंशपुराण 57.34