गंगा: Difference between revisions
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< | <span class="HindiText"> (1) रत्नपुर के राजा जह्नु की पुत्री । इसका विवाह राजा पाराशर से हुआ था । भीष्म इसका पुत्र था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.35, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.77-80 </span></br> | ||
< | <span class="HindiText">(2) चौदह महानदियों में प्रथम नदी । यह पद्म सरोवर के पूर्व द्वार से निकली है । इसके उद्गम-स्थान का विस्तार छ: योजन और एक कोस तथा गहराई आधी कोस है । यह अपने निर्गम स्थान से पांच सौ योजन पूर्व दिशा की ओर बहकर गंगाकूट से लौटती हुई दक्षिण की ओर भरतक्षेत्र में आयी है । वज्रमुखकुंड से दक्षिण की ओर कुंडलाकार होकर यह विजयार्ध पर्वत की गुफा में आठ योजन चौड़ी हो गई है । अंत में यह चौदह हजार सहायक नदियों के साथ पूर्व लवण समुद्र में प्रवेश करता है । यहाँ इसकी चौड़ाई साढ़े बासठ योजन है । यह जिस तोरणद्वार से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है वह तेरानवें योजन तीन कोस ऊंचा तथा आधा योजन गहरा है । <span class="GRef"> महापुराण 19.105, 27.9, 32.132, 63.195, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.132-150, 267 </span>नोल पर्वत से निकलकर यह विदेहक्षेत्र के कच्छा आदि देशों में भी बहती है । गन्गाधती नदी इसका संगम है । इसी नदी के किनारे-किनारे चलकर भरत की सेना गंगाद्वार तक पहुंची थी । <span class="GRef"> महापुराण 29. 49, 70.322, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.267 </span>अपरनाम जाह्नवी, व्योमापगा, आकाशगंगा, त्रिमार्गगा, मंदाकिनी । <span class="GRef"> महापुराण 26. 146-947, 27.10, 28. 17, 19, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 12.73 </span></br> | ||
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Revision as of 18:49, 4 August 2022
सिद्धांतकोष से
- पूर्वीमध्य आर्य खंड की एक नदी–देखें लोक - 3.11।
- कश्मीर में बहनेवाली कृष्ण गंगा ही पौराणिक गंगा नदी हो सकती है। ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र 139 A. N. up and H. L.)–देखें कृष्ण गंगा ।
पुराणकोष से
(1) रत्नपुर के राजा जह्नु की पुत्री । इसका विवाह राजा पाराशर से हुआ था । भीष्म इसका पुत्र था । हरिवंशपुराण 45.35, पांडवपुराण 7.77-80
(2) चौदह महानदियों में प्रथम नदी । यह पद्म सरोवर के पूर्व द्वार से निकली है । इसके उद्गम-स्थान का विस्तार छ: योजन और एक कोस तथा गहराई आधी कोस है । यह अपने निर्गम स्थान से पांच सौ योजन पूर्व दिशा की ओर बहकर गंगाकूट से लौटती हुई दक्षिण की ओर भरतक्षेत्र में आयी है । वज्रमुखकुंड से दक्षिण की ओर कुंडलाकार होकर यह विजयार्ध पर्वत की गुफा में आठ योजन चौड़ी हो गई है । अंत में यह चौदह हजार सहायक नदियों के साथ पूर्व लवण समुद्र में प्रवेश करता है । यहाँ इसकी चौड़ाई साढ़े बासठ योजन है । यह जिस तोरणद्वार से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है वह तेरानवें योजन तीन कोस ऊंचा तथा आधा योजन गहरा है । महापुराण 19.105, 27.9, 32.132, 63.195, हरिवंशपुराण 5.132-150, 267 नोल पर्वत से निकलकर यह विदेहक्षेत्र के कच्छा आदि देशों में भी बहती है । गन्गाधती नदी इसका संगम है । इसी नदी के किनारे-किनारे चलकर भरत की सेना गंगाद्वार तक पहुंची थी । महापुराण 29. 49, 70.322, हरिवंशपुराण 5.267 अपरनाम जाह्नवी, व्योमापगा, आकाशगंगा, त्रिमार्गगा, मंदाकिनी । महापुराण 26. 146-947, 27.10, 28. 17, 19, पद्मपुराण 12.73