तत्त्ववतीधारणा: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
Komaljain7 (talk | contribs) mNo edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: त]] | [[Category: त]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 15:06, 13 August 2022
ज्ञानार्णव/37/28/385 सप्तधातुविनिर्मुक्तं पूर्णचंद्रामलत्विषम् । सर्वज्ञकल्पमात्मानं तत: स्मरति संयमी।28।=तत्पश्चात् (वारुणी धारणा के पश्चात्) संयमी मुनि सप्त धातुरहित, पूर्णचंद्रमा के समान है निर्मल प्रभा जिसको ऐसे सर्वज्ञ समान अपने आत्मा का ध्यान करै।28। विशेष–देखें पिंडस्थ ध्यान का लक्षण ।