प्रभाचंद्र: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 7: | Line 7: | ||
<li> राष्टकूट के नरेश गोविंद तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनंदि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) । </li> | <li> राष्टकूट के नरेश गोविंद तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनंदि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) । </li> | ||
<li> महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. 818-878) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रंथ ‘चंद्रोदय’ . समय - ई. 797 (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/ </span>प्र.8/पं. पन्ना लाल) । </li> | <li> महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. 818-878) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रंथ ‘चंद्रोदय’ . समय - ई. 797 (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/ </span>प्र.8/पं. पन्ना लाल) । </li> | ||
<li> नंदिसंघ देशीयगण गोलाचार्य | <li> नंदिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आम्नाय में आप पद्मनंदि सैद्धांतिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनंदि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनंदि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तंड, न्याय कुमुद चंद्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितंत्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पंचास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, महापुराण टिप्पणी, गद्य कथाकोष, क्रिया-कलाप टीका और किन्हीं विद्वानों के अनुसार रत्नकरंड श्रावकाचार की टीका भी . समय - पं. महेंद्र कुमार के अनुसार वि. 1037-1122; पं. कैलाश चंद्र जी के अनुसार ई. 950-1020 । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]); (जै/2/348), 1/388); (ती./3/49, 50) । </li> | ||
<li> नंदिसंघ देशीयगण में मेघचंद्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनंदि व शुभचंद्र के सहधर्मा । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]) । </li> | <li> नंदिसंघ देशीयगण में मेघचंद्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनंदि व शुभचंद्र के सहधर्मा । (देखें [[ इतिहास#7.5 | इतिहास - 7.5]]) । </li> | ||
<li> सेन गण के भट्टारक बाल चंद्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धांतरसार की | <li> सेन गण के भट्टारक बाल चंद्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धांतरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चंद जी के अनुसार रत्नकरंड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. 13 (ई. 1185-1243) । </li> | ||
<li> नंदि संघ बलात्कार गण की अजमेर गद्दी के अनुसार आप रत्न कीर्ति भट्टारक के शिष्य और पद्मनंदि के शिष्य थे । समय - वि. श. 13 पूर्व अथवा वि. 1310-1385 (ई. 1253-1328) । (देखें [[ इतिहास#3.4 | इतिहास - 3.4]]) । (देखें [[ इतिहास#7.3 | इतिहास - 7.3]]) ।</li> | <li> नंदि संघ बलात्कार गण की अजमेर गद्दी के अनुसार आप रत्न कीर्ति भट्टारक के शिष्य और पद्मनंदि के शिष्य थे । समय - वि. श. 13 पूर्व अथवा वि. 1310-1385 (ई. 1253-1328) । (देखें [[ इतिहास#3.4 | इतिहास - 3.4]]) । (देखें [[ इतिहास#7.3 | इतिहास - 7.3]]) ।</li> | ||
<li> श्रुत मुनि (ई. 1341, वि. 1398) के शिक्षा गुरु । समय - वि. श. 14 का उत्तरार्ध (ई. शु. 14 पूर्व)। (जै./2/195/349) । </li> | <li> श्रुत मुनि (ई. 1341, वि. 1398) के शिक्षा गुरु । समय - वि. श. 14 का उत्तरार्ध (ई. शु. 14 पूर्व)। (जै./2/195/349) । </li> | ||
<li> काष्ठासंघी आचार्य । गुरु परंपरा - हेमकीर्ति, धर्मचंद्र, प्रभाचंद्र, । कृति -तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर । समय - वि. 1489 (ई. 1432) । (ज. /2/369-370) </li> | <li> काष्ठासंघी आचार्य । गुरु परंपरा - हेमकीर्ति, धर्मचंद्र, प्रभाचंद्र, । कृति -तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर । समय - वि. 1489 (ई. 1432) । (ज. /2/369-370) </li> | ||
<li> नंदिसंघ बलात्कार गण दिल्ली शाखा जो पीछे | <li> नंदिसंघ बलात्कार गण दिल्ली शाखा जो पीछे चित्तौड़ शाखा के रूप में रूपांतरित हो गई । गुरु - जिनचंद्र । समय - व. 1571-1586 (ई. 1514-1529) । ती./3/384) ।</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 23: | Line 23: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: इतिहास]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == |
Revision as of 10:19, 15 August 2022
सिद्धांतकोष से
इस नाम के अनेकों आचार्य हुए हैं -
- नंदिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार लोकचंद्र के शिष्य और नेमिचंद्र के गुरु । समय - शक 453-478 (ई. 531-556) । (देखें इतिहास - 7.2) ।
- अकलंक भट्ट (ई. 620-680) के परवर्ती एक आचार्य जिन्होंने गृद्धपिच्छ कृत तत्त्वार्थ सूत्र के अनसुार एक द्वितीय तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की । (ती./3/300) ।
- राष्टकूट के नरेश गोविंद तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक 719-724) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनंदि के शिष्य थे । समय - लगभग शक 710-754 (ई. 788-832) । (जै. /2/113) ।
- महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. 818-878) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रंथ ‘चंद्रोदय’ . समय - ई. 797 ( हरिवंशपुराण/ प्र.8/पं. पन्ना लाल) ।
- नंदिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आम्नाय में आप पद्मनंदि सैद्धांतिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनंदि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनंदि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तंड, न्याय कुमुद चंद्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितंत्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पंचास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, महापुराण टिप्पणी, गद्य कथाकोष, क्रिया-कलाप टीका और किन्हीं विद्वानों के अनुसार रत्नकरंड श्रावकाचार की टीका भी . समय - पं. महेंद्र कुमार के अनुसार वि. 1037-1122; पं. कैलाश चंद्र जी के अनुसार ई. 950-1020 । (देखें इतिहास - 7.5); (जै/2/348), 1/388); (ती./3/49, 50) ।
- नंदिसंघ देशीयगण में मेघचंद्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनंदि व शुभचंद्र के सहधर्मा । (देखें इतिहास - 7.5) ।
- सेन गण के भट्टारक बाल चंद्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धांतरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चंद जी के अनुसार रत्नकरंड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. 13 (ई. 1185-1243) ।
- नंदि संघ बलात्कार गण की अजमेर गद्दी के अनुसार आप रत्न कीर्ति भट्टारक के शिष्य और पद्मनंदि के शिष्य थे । समय - वि. श. 13 पूर्व अथवा वि. 1310-1385 (ई. 1253-1328) । (देखें इतिहास - 3.4) । (देखें इतिहास - 7.3) ।
- श्रुत मुनि (ई. 1341, वि. 1398) के शिक्षा गुरु । समय - वि. श. 14 का उत्तरार्ध (ई. शु. 14 पूर्व)। (जै./2/195/349) ।
- काष्ठासंघी आचार्य । गुरु परंपरा - हेमकीर्ति, धर्मचंद्र, प्रभाचंद्र, । कृति -तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर । समय - वि. 1489 (ई. 1432) । (ज. /2/369-370)
- नंदिसंघ बलात्कार गण दिल्ली शाखा जो पीछे चित्तौड़ शाखा के रूप में रूपांतरित हो गई । गुरु - जिनचंद्र । समय - व. 1571-1586 (ई. 1514-1529) । ती./3/384) ।
पुराणकोष से
चंद्रोदय के रचयिता एक कवि । आचार्य जिनसेन ने आचार्य यशोभद्र के पश्चात् तथा आचार्य शिवकोटि के पूर्व इनका स्मरण किया है । ये कुमारसेन के शिष्य थे । महापुराण 1.46-49