जयबाहु: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
ShrutiJain (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 25: | Line 25: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ज]] | [[Category: ज]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Revision as of 11:23, 15 August 2022
सिद्धांतकोष से
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप आठ अंगधारी थे। दूसरी मान्यता के अनुसार आप केवल आचारांगधारी थे। अपर नाम भद्रबाहु या यशोबाहु था। (विशेष देखो भद्रबाहु-द्वितीय)।
पुराणकोष से
भगवान् महावीर के निर्वाण के पांच सौ पैसठ वर्ष बाद एक गौ अठारह वर्ष के काल में हुए आचारांग धारी चार मुनियों में तीसरे मुनि, अपरनाम यशोबाहु । हरिवंशपुराण 66.24, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-50 जयश्यामा― (1) कांपिल्यपुरी के राजा कृतवर्मा की महादेवी । यह तीर्थंकर विमलनाथ की जननी थी । महापुराण 59.14-15,21
(2) अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशी-काश्यपगोत्री राजा सिंहसेन की रानी । यह तीर्थंकर अनंतनाथ की जननी थी । महापुराण 60. 21-22