आसन: Difference between revisions
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<p>2. आसन विशेषके लक्षण</p> | <p>2. आसन विशेषके लक्षण</p> | ||
<p class="SanskritText">अनगार धर्मामृत अधिकार 8/83 में उद्धृत `जंघाया जंघाया श्लिष्टे मध्यभागे प्रकीर्तितम्। पद्मासन' सुखाधायि सुसाध्यें सकलैर्जनैः। बुधैरुपर्यधोभागे जंघयोरुपभयोरपि। समस्तयोः कृते ज्ञेयं पर्यंकासनमासनम् ॥2॥ उर्वोरुपरि निक्षेपे पादयोर्विहिते सति। वीरासनं चिरं कर्तुंशक्यं धीरैर्न कातरैः ॥3॥ जंघाया मध्यभागे तु संश्लेषो यत्र जंघया। पद्मासनमिति प्रोक्तं तदासनविचक्षणैः। स्याज्जंघयोरधोभागे पादोपरि कृते सति। पर्यंको नाभिगोत्तानदक्षिणोत्तरपाणिकः। वार्मोघ्रिर्दक्षिणोरूर्घ्वं वामोरुपरि दक्षिणः। क्रियते यत्र तद्धीरो चित्तं वीरासनं स्मृतम्।'' </p> | <p class="SanskritText">अनगार धर्मामृत अधिकार 8/83 में उद्धृत `जंघाया जंघाया श्लिष्टे मध्यभागे प्रकीर्तितम्। पद्मासन' सुखाधायि सुसाध्यें सकलैर्जनैः। बुधैरुपर्यधोभागे जंघयोरुपभयोरपि। समस्तयोः कृते ज्ञेयं पर्यंकासनमासनम् ॥2॥ उर्वोरुपरि निक्षेपे पादयोर्विहिते सति। वीरासनं चिरं कर्तुंशक्यं धीरैर्न कातरैः ॥3॥ जंघाया मध्यभागे तु संश्लेषो यत्र जंघया। पद्मासनमिति प्रोक्तं तदासनविचक्षणैः। स्याज्जंघयोरधोभागे पादोपरि कृते सति। पर्यंको नाभिगोत्तानदक्षिणोत्तरपाणिकः। वार्मोघ्रिर्दक्षिणोरूर्घ्वं वामोरुपरि दक्षिणः। क्रियते यत्र तद्धीरो चित्तं वीरासनं स्मृतम्।'' </p> | ||
<p class="HindiText">= जंघाका दूसरी जंघाके मध्य भागसे मिल जाने पर पद्मासन हुआ करता है। इस आसनमें बूत सुख होता है, और समस्त लोक इसे | <p class="HindiText">= जंघाका दूसरी जंघाके मध्य भागसे मिल जाने पर पद्मासन हुआ करता है। इस आसनमें बूत सुख होता है, और समस्त लोक इसे बड़ी सुगमतासे धारण कर सकते हैं। दोनों जंघाओं को आपसमें मिलाकर ऊपर नीचे रखनेसे पर्यंकासन कहते हैं। पैरोंको दोनों जंघाओंके ऊपर नीचे रखनेसे वीरासन होता है। कातर पुरुष इसे अधिक देर तक नहीं कर सकते, धीर वीर ही कर सकते हैं। ( क्रियाकलाप मुख्याधिकार संख्या 1/6) किसी-किसीने इन आसनोंका स्वरूप इस प्रकार बताया है कि-जब एक जंघाका मध्य भाग दूसरी जंघासे मिल जाये तब उस आसनको पद्मासन कहते हैं। दोनों पैरोंके ऊपर जंघाओंके नीचेके भागको रखकर नाभिके नीचे ऊपरको हथेली करके ऊपर दोनों हाथोंको रखनेसे पर्यकासन होता है। दक्षिण जंघाके उपर वाम पैर और वाम जंघाके ऊपर दक्षिण पैर रखनेसे वीरासन बताया है जो कि धीर पुरुषोंके योग्य है।</p> | ||
<p class="SanskritText"> | <p class="SanskritText">बोधपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 51में उद्युत “गुल्फोत्तानकरांगुष्ठेरखारोमालिनासिकाः। समदृष्टिः समाः कुर्यान्नातिस्तब्धो न वामनः।''</p> | ||
<p class="HindiText">= दोनों पाँवके टखने ऊपरकी और करके अर्थात् दोनों पाँवको जंघाओं पर रखकर उनके ऊपर दोनों हाथोंको ऊपर नीचे रखें ताकि हाथके दोनों अँगूठे दोनों टखनोंके ऊपर आ जायें। पेट व छातीकी रोमावली व नासिका एक सीधमें रहें। दोनों नेत्रोंकी दृष्टि भी नासिका पर | <p class="HindiText">= दोनों पाँवके टखने ऊपरकी और करके अर्थात् दोनों पाँवको जंघाओं पर रखकर उनके ऊपर दोनों हाथोंको ऊपर नीचे रखें ताकि हाथके दोनों अँगूठे दोनों टखनोंके ऊपर आ जायें। पेट व छातीकी रोमावली व नासिका एक सीधमें रहें। दोनों नेत्रोंकी दृष्टि भी नासिका पर पड़ती रहे। इस प्रकार सबको समान सीधमें करके सीधे बैठें। न अधिक अकड़ कर और न झुककर। (इसको सुखासन कहते हैं।)</p> | ||
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Revision as of 12:43, 15 August 2022
सिद्धांतकोष से
1. आसनके भेद
ज्ञानार्णव अधिकार 28/10 पर्यंकमर्द्धपर्यंकं वज्रं वीरासनं तथा। सुखारविंदपूर्वे च कायोत्सर्गश्च सम्मतः ॥10॥
= पर्यंकासन, अर्द्धपर्यंकासन्, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, कमलासन, कायोत्सर्ग ये ध्यानके योग्य आसन माने गये हैँ।
2. आसन विशेषके लक्षण
अनगार धर्मामृत अधिकार 8/83 में उद्धृत `जंघाया जंघाया श्लिष्टे मध्यभागे प्रकीर्तितम्। पद्मासन' सुखाधायि सुसाध्यें सकलैर्जनैः। बुधैरुपर्यधोभागे जंघयोरुपभयोरपि। समस्तयोः कृते ज्ञेयं पर्यंकासनमासनम् ॥2॥ उर्वोरुपरि निक्षेपे पादयोर्विहिते सति। वीरासनं चिरं कर्तुंशक्यं धीरैर्न कातरैः ॥3॥ जंघाया मध्यभागे तु संश्लेषो यत्र जंघया। पद्मासनमिति प्रोक्तं तदासनविचक्षणैः। स्याज्जंघयोरधोभागे पादोपरि कृते सति। पर्यंको नाभिगोत्तानदक्षिणोत्तरपाणिकः। वार्मोघ्रिर्दक्षिणोरूर्घ्वं वामोरुपरि दक्षिणः। क्रियते यत्र तद्धीरो चित्तं वीरासनं स्मृतम्।
= जंघाका दूसरी जंघाके मध्य भागसे मिल जाने पर पद्मासन हुआ करता है। इस आसनमें बूत सुख होता है, और समस्त लोक इसे बड़ी सुगमतासे धारण कर सकते हैं। दोनों जंघाओं को आपसमें मिलाकर ऊपर नीचे रखनेसे पर्यंकासन कहते हैं। पैरोंको दोनों जंघाओंके ऊपर नीचे रखनेसे वीरासन होता है। कातर पुरुष इसे अधिक देर तक नहीं कर सकते, धीर वीर ही कर सकते हैं। ( क्रियाकलाप मुख्याधिकार संख्या 1/6) किसी-किसीने इन आसनोंका स्वरूप इस प्रकार बताया है कि-जब एक जंघाका मध्य भाग दूसरी जंघासे मिल जाये तब उस आसनको पद्मासन कहते हैं। दोनों पैरोंके ऊपर जंघाओंके नीचेके भागको रखकर नाभिके नीचे ऊपरको हथेली करके ऊपर दोनों हाथोंको रखनेसे पर्यकासन होता है। दक्षिण जंघाके उपर वाम पैर और वाम जंघाके ऊपर दक्षिण पैर रखनेसे वीरासन बताया है जो कि धीर पुरुषोंके योग्य है।
बोधपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 51में उद्युत “गुल्फोत्तानकरांगुष्ठेरखारोमालिनासिकाः। समदृष्टिः समाः कुर्यान्नातिस्तब्धो न वामनः।
= दोनों पाँवके टखने ऊपरकी और करके अर्थात् दोनों पाँवको जंघाओं पर रखकर उनके ऊपर दोनों हाथोंको ऊपर नीचे रखें ताकि हाथके दोनों अँगूठे दोनों टखनोंके ऊपर आ जायें। पेट व छातीकी रोमावली व नासिका एक सीधमें रहें। दोनों नेत्रोंकी दृष्टि भी नासिका पर पड़ती रहे। इस प्रकार सबको समान सीधमें करके सीधे बैठें। न अधिक अकड़ कर और न झुककर। (इसको सुखासन कहते हैं।)
• आसनोंकी प्रयोग विधि - देखें कृतिकर्म - 3।
पुराणकोष से
(1) राजा के छ: गुणों में तीसरा गुण― मुझे कोई दूसरा और मैं किसी दूसरे को नष्ट करने में समर्थ नहीं हूँ ऐसी स्थिति में शांतभाव से चुप बैठ जाना । महापुराण 68.66-69
(2) भोग के दस साधनों में एक साधन । महापुराण 37.143