चतुर्मुख: Difference between revisions
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<span class="GRef"> | <span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/149/293/12 </span><span class="SanskritText"> चतुर्दिक्षु सर्वसभ्यानां सन्मुखस्य दृश्यमानत्वात् सिद्धावस्थायां तु सर्वत्रावलोकनशीलत्वात् चतुर्मुख:।</span>=<span class="HindiText">अर्हंत अवस्था में तो समवशरण में सर्व सभाजनों को चारों ही दिशाओं में उनका मुख दिखाई देता है इसलिए तथा सिद्धावस्था में सर्वत्र सर्व दिशाओं में देखने के स्वभाव वाले होने के कारण भगवान् का नाम चतुर्मुख है। </span> | ||
<p>मगध की राज्य वंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपाल का पुत्र था। वी.नि.1003 में इसका जन्म हुआ था। 70 वर्ष की कुल आयु थी। 40 वर्ष राज्य किया। अत्यंत अत्याचारी होने के कारण कल्की कहलाता था। हूणवंशी मिहिर कुल ही चतुर्मुख था। समय–वी.नि.1033-1073 (ई.506-546)।–देखें [[ इतिहास#3.2 | इतिहास - 3.2]],4।</p> | <p>मगध की राज्य वंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपाल का पुत्र था। वी.नि.1003 में इसका जन्म हुआ था। 70 वर्ष की कुल आयु थी। 40 वर्ष राज्य किया। अत्यंत अत्याचारी होने के कारण कल्की कहलाता था। हूणवंशी मिहिर कुल ही चतुर्मुख था। समय–वी.नि.1033-1073 (ई.506-546)।–देखें [[ इतिहास#3.2 | इतिहास - 3.2]],4।</p> | ||
<p>पदुपचासी और हरिवंश पुराण के कर्ता एक अपभ्रंश कवि। समय–कवि स्वयंभू (ई.734) से पूर्ववर्ती (ती./4/94)।</p> | <p>पदुपचासी और हरिवंश पुराण के कर्ता एक अपभ्रंश कवि। समय–कवि स्वयंभू (ई.734) से पूर्ववर्ती (ती./4/94)।</p> | ||
<span class="GRef"> | <span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/149/293/12 </span><span class="SanskritText"> चतुर्दिक्षु सर्वसभ्यानां सन्मुखस्य दृश्यमानत्वात् सिद्धावस्थायां तु सर्वत्रावलोकनशीलत्वात् चतुर्मुख:।</span>=<span class="HindiText">अर्हंत अवस्था में तो समवशरण में सर्व सभाजनों को चारों ही दिशाओं में उनका मुख दिखाई देता है इसलिए तथा सिद्धावस्था में सर्वत्र सर्व दिशाओं में देखने के स्वभाव वाले होने के कारण भगवान् का नाम चतुर्मुख है। </span> | ||
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) नौ नारदों में सातवाँ नारद । इनकी आयु नारायणों के बराबर होती है तथा नारायणों के समय में ही ये होते हैं । महाभव्य और जिनेंद्र के अनुगामी होते हुए भी ये कलहप्रेमी, कदाचित् धर्मस्नेही और हिंसा-प्रेमी होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 548-550 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) नौ नारदों में सातवाँ नारद । इनकी आयु नारायणों के बराबर होती है तथा नारायणों के समय में ही ये होते हैं । महाभव्य और जिनेंद्र के अनुगामी होते हुए भी ये कलहप्रेमी, कदाचित् धर्मस्नेही और हिंसा-प्रेमी होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 548-550 </span></p> | ||
<p>( 2) एक मुनिराज, जिन्हें सिद्धिवन में केवलज्ञान हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 48.79 </span></p> | <p>( 2) एक मुनिराज, जिन्हें सिद्धिवन में केवलज्ञान हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 48.79 </span></p> | ||
<p id="3">(3) राजा शिशुपाल और रानी पृथिवीसुंदरी का पुत्र । दुःषमा काल के एक हजार वर्ष बाद पाटलिपुत्र नामक नगर में इसका जन्म हुआ था । यह महादुर्जन था । कल्किराज नाम से विख्यात था । इसकी आयु सत्तर वर्ष और शासनकाल चालीस वर्ष रहा । निर्ग्रंथ मुनियों से कर वसूली के प्रसंग में किसी सम्यग्दृष्टि असुर द्वारा यह मारा गया और मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 76.379-415, </span>(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.174 </span></p> | <p id="3">(3) राजा शिशुपाल और रानी पृथिवीसुंदरी का पुत्र । दुःषमा काल के एक हजार वर्ष बाद पाटलिपुत्र नामक नगर में इसका जन्म हुआ था । यह महादुर्जन था । कल्किराज नाम से विख्यात था । इसकी आयु सत्तर वर्ष और शासनकाल चालीस वर्ष रहा । निर्ग्रंथ मुनियों से कर वसूली के प्रसंग में किसी सम्यग्दृष्टि असुर द्वारा यह मारा गया और मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 76.379-415, </span> | ||
(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.174 </span></p> | |||
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Revision as of 22:38, 18 August 2022
सिद्धांतकोष से
भावपाहुड़ टीका/149/293/12 चतुर्दिक्षु सर्वसभ्यानां सन्मुखस्य दृश्यमानत्वात् सिद्धावस्थायां तु सर्वत्रावलोकनशीलत्वात् चतुर्मुख:।=अर्हंत अवस्था में तो समवशरण में सर्व सभाजनों को चारों ही दिशाओं में उनका मुख दिखाई देता है इसलिए तथा सिद्धावस्था में सर्वत्र सर्व दिशाओं में देखने के स्वभाव वाले होने के कारण भगवान् का नाम चतुर्मुख है।
मगध की राज्य वंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपाल का पुत्र था। वी.नि.1003 में इसका जन्म हुआ था। 70 वर्ष की कुल आयु थी। 40 वर्ष राज्य किया। अत्यंत अत्याचारी होने के कारण कल्की कहलाता था। हूणवंशी मिहिर कुल ही चतुर्मुख था। समय–वी.नि.1033-1073 (ई.506-546)।–देखें इतिहास - 3.2,4।
पदुपचासी और हरिवंश पुराण के कर्ता एक अपभ्रंश कवि। समय–कवि स्वयंभू (ई.734) से पूर्ववर्ती (ती./4/94)।
भावपाहुड़ टीका/149/293/12 चतुर्दिक्षु सर्वसभ्यानां सन्मुखस्य दृश्यमानत्वात् सिद्धावस्थायां तु सर्वत्रावलोकनशीलत्वात् चतुर्मुख:।=अर्हंत अवस्था में तो समवशरण में सर्व सभाजनों को चारों ही दिशाओं में उनका मुख दिखाई देता है इसलिए तथा सिद्धावस्था में सर्वत्र सर्व दिशाओं में देखने के स्वभाव वाले होने के कारण भगवान् का नाम चतुर्मुख है।
पुराणकोष से
(1) नौ नारदों में सातवाँ नारद । इनकी आयु नारायणों के बराबर होती है तथा नारायणों के समय में ही ये होते हैं । महाभव्य और जिनेंद्र के अनुगामी होते हुए भी ये कलहप्रेमी, कदाचित् धर्मस्नेही और हिंसा-प्रेमी होते हैं । हरिवंशपुराण 60. 548-550
( 2) एक मुनिराज, जिन्हें सिद्धिवन में केवलज्ञान हुआ था । महापुराण 48.79
(3) राजा शिशुपाल और रानी पृथिवीसुंदरी का पुत्र । दुःषमा काल के एक हजार वर्ष बाद पाटलिपुत्र नामक नगर में इसका जन्म हुआ था । यह महादुर्जन था । कल्किराज नाम से विख्यात था । इसकी आयु सत्तर वर्ष और शासनकाल चालीस वर्ष रहा । निर्ग्रंथ मुनियों से कर वसूली के प्रसंग में किसी सम्यग्दृष्टि असुर द्वारा यह मारा गया और मरकर प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 76.379-415, (4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.174