प्रवचन संनिकर्ष: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> धवला 13/5,5,50/284/4 </span><span class="SanskritText"> उच्यंते इति वचनानि जीवाद्यर्थाः प्रकर्षेण वचनानि संनिकृष्यंतेऽस्मिंनिति प्रवचनसंनिकर्षो द्वादशांगश्रुतज्ञानम् । कः संनिकर्षः । एकस्मिन् वस्तुन्येकस्मिन् धर्मे निरुद्धे शेषधर्माणां तत्र सत्त्वासत्त्वविचारः सत्स्वप्येकस्मिन्नुत्कर्षमुपगते शेषाणामुत्कर्षानुत्कर्षविचारश्च संनिकर्षः । अथवा प्रकर्षेण वचनानि जीवाद्यर्थाः संंयस्यंते प्ररूप्यंते अनेकांतात्मतया अनेनेति प्रवचनसंन्यासः ।</span> = <span class="HindiText">‘ जो कहे जाते हैं’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार वचन शब्द का अर्थ जीवादि पदार्थ है । प्रकर्षरूप से जिसमें वचन सन्निकृष्ट होते हैं, वह प्रवचन सन्निकर्ष रूपसे प्रसिद्ध द्वादशांग श्रुतज्ञान है । <strong>प्रश्न -</strong> सन्निकर्ष क्या है ?<strong> उत्तर- </strong></span></p> | <p><span class="GRef"> धवला 13/5,5,50/284/4 </span><span class="SanskritText"> उच्यंते इति वचनानि जीवाद्यर्थाः प्रकर्षेण वचनानि संनिकृष्यंतेऽस्मिंनिति प्रवचनसंनिकर्षो द्वादशांगश्रुतज्ञानम् । कः संनिकर्षः । एकस्मिन् वस्तुन्येकस्मिन् धर्मे निरुद्धे शेषधर्माणां तत्र सत्त्वासत्त्वविचारः सत्स्वप्येकस्मिन्नुत्कर्षमुपगते शेषाणामुत्कर्षानुत्कर्षविचारश्च संनिकर्षः । अथवा प्रकर्षेण वचनानि जीवाद्यर्थाः संंयस्यंते प्ररूप्यंते अनेकांतात्मतया अनेनेति प्रवचनसंन्यासः ।</span> = <span class="HindiText">‘ जो कहे जाते हैं’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार वचन शब्द का अर्थ जीवादि पदार्थ है । प्रकर्षरूप से जिसमें वचन सन्निकृष्ट होते हैं, वह प्रवचन सन्निकर्ष रूपसे प्रसिद्ध द्वादशांग श्रुतज्ञान है । <strong>प्रश्न -</strong> सन्निकर्ष क्या है ? | ||
<strong> उत्तर- </strong></span></p> | |||
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<li><span class="HindiText"> एक वस्तु में एक धर्म के विवक्षित होने पर उसमें शेष धर्मों के सत्त्वासत्त्वका विचार तथा उसमें रहने वाले उक्त धर्मों में से किसी एक धर्म के उत्कर्ष को प्राप्त होने पर शेष धर्मों के उत्कर्षानुत्कर्ष का विचार करना सन्निकर्ष कहलाता है । </span></li> | <li><span class="HindiText"> एक वस्तु में एक धर्म के विवक्षित होने पर उसमें शेष धर्मों के सत्त्वासत्त्वका विचार तथा उसमें रहने वाले उक्त धर्मों में से किसी एक धर्म के उत्कर्ष को प्राप्त होने पर शेष धर्मों के उत्कर्षानुत्कर्ष का विचार करना सन्निकर्ष कहलाता है । </span></li> |
Revision as of 23:05, 28 August 2022
धवला 13/5,5,50/284/4 उच्यंते इति वचनानि जीवाद्यर्थाः प्रकर्षेण वचनानि संनिकृष्यंतेऽस्मिंनिति प्रवचनसंनिकर्षो द्वादशांगश्रुतज्ञानम् । कः संनिकर्षः । एकस्मिन् वस्तुन्येकस्मिन् धर्मे निरुद्धे शेषधर्माणां तत्र सत्त्वासत्त्वविचारः सत्स्वप्येकस्मिन्नुत्कर्षमुपगते शेषाणामुत्कर्षानुत्कर्षविचारश्च संनिकर्षः । अथवा प्रकर्षेण वचनानि जीवाद्यर्थाः संंयस्यंते प्ररूप्यंते अनेकांतात्मतया अनेनेति प्रवचनसंन्यासः । = ‘ जो कहे जाते हैं’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार वचन शब्द का अर्थ जीवादि पदार्थ है । प्रकर्षरूप से जिसमें वचन सन्निकृष्ट होते हैं, वह प्रवचन सन्निकर्ष रूपसे प्रसिद्ध द्वादशांग श्रुतज्ञान है । प्रश्न - सन्निकर्ष क्या है ? उत्तर-
- एक वस्तु में एक धर्म के विवक्षित होने पर उसमें शेष धर्मों के सत्त्वासत्त्वका विचार तथा उसमें रहने वाले उक्त धर्मों में से किसी एक धर्म के उत्कर्ष को प्राप्त होने पर शेष धर्मों के उत्कर्षानुत्कर्ष का विचार करना सन्निकर्ष कहलाता है ।
- अथवा, प्रकर्षरूप से वचन अर्थात् जीवादि पदार्थ अनेकांतात्मकरूप से जिसके द्वारा संन्यस्त अर्थात् प्ररूपित किये जाते हैं, वह प्रवचन संन्यास अर्थात् उक्त द्वादशांग श्रुतज्ञान ही है । श्रुतज्ञान का अपरनाम है - देखें श्रुतज्ञान - I.2.1 ।