उपपाद: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड | जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 83/205/1</span><span class="SanskritText"> उपपदनं संपुटशय्योष्ट्रमुखाकारादिषु लघुनांतर्मुहुर्तेनैव जीवस्य जननम् उपपादः।</span><span class="HindiText"> उपपदन कहिए संपुटशय्या वा उष्ट्रादि मुखाकार योनि विषै लघु अंतर्मुहूर्त कालकरि ही जीव का उपजना सो उपपाद कहिए।</span> | <p> <span class="GRef"> गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड | जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 83/205/1</span><span class="SanskritText"> उपपदनं संपुटशय्योष्ट्रमुखाकारादिषु लघुनांतर्मुहुर्तेनैव जीवस्य जननम् उपपादः।</span><span class="HindiText"> उपपदन कहिए संपुटशय्या वा उष्ट्रादि मुखाकार योनि विषै लघु अंतर्मुहूर्त कालकरि ही जीव का उपजना सो उपपाद कहिए।</span> | ||
<p><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/8 विशेषार्थ </span><span class="HindiText"> "विवक्षित भव के प्रथम समय में होने वाली पर्याय की प्राप्ति को उपपाद कहते हैं।"</p> | <p><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/8 विशेषार्थ </span></p> | ||
<p>2. उपपाद के भेद</p> | <p><span class="HindiText"> "विवक्षित भव के प्रथम समय में होने वाली पर्याय की प्राप्ति को उपपाद कहते हैं।"</p> | ||
<p><span class="HindiText">2. उपपाद के भेद</span></p> | |||
<p><span class="GRef">धवला पुस्तक 7/2,6,1/300/3 </span><span class="PrakritText"> उववादो दुविहो-उजुगदिपुव्वओ विग्गहगदिपुव्वओ चेदि। तत्थ एक्केक्को दुविहो-मारणांतियसमुग्घादपुव्वओ तव्विवरीदओ चेदि।</span></p> | <p><span class="GRef">धवला पुस्तक 7/2,6,1/300/3 </span><span class="PrakritText"> उववादो दुविहो-उजुगदिपुव्वओ विग्गहगदिपुव्वओ चेदि। तत्थ एक्केक्को दुविहो-मारणांतियसमुग्घादपुव्वओ तव्विवरीदओ चेदि।</span></p> | ||
<p class="HindiText">= उपपाद दो प्रकार है-ऋजुगतिपूर्वक और विग्रहगतिपूर्वक। इनमें प्रत्येक मारणांतिक समुद्घातपूर्वक और तद्विपरीत के भेद से दो-दो प्रकार है।</p> | <p class="HindiText">= उपपाद दो प्रकार है-ऋजुगतिपूर्वक और विग्रहगतिपूर्वक। इनमें प्रत्येक मारणांतिक समुद्घातपूर्वक और तद्विपरीत के भेद से दो-दो प्रकार है।</p> |
Revision as of 17:49, 31 August 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/31/187/5 उपेत्य पद्यतेऽस्मिन्निति उपपादः। देवनारकोत्पत्तिस्थानविशेषसंज्ञा।
= प्राप्त होकर जिसमें जीव हलन-चलन करता है उसे उपपाद कहते हैं। `उपपाद' यह देव-नारकियों के उत्पत्तिस्थान विशेष की संज्ञा है।
(राजवार्तिक अध्याय 2/31/4/140/29)
गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड | जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 83/205/1 उपपदनं संपुटशय्योष्ट्रमुखाकारादिषु लघुनांतर्मुहुर्तेनैव जीवस्य जननम् उपपादः। उपपदन कहिए संपुटशय्या वा उष्ट्रादि मुखाकार योनि विषै लघु अंतर्मुहूर्त कालकरि ही जीव का उपजना सो उपपाद कहिए।
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/8 विशेषार्थ
"विवक्षित भव के प्रथम समय में होने वाली पर्याय की प्राप्ति को उपपाद कहते हैं।"
2. उपपाद के भेद
धवला पुस्तक 7/2,6,1/300/3 उववादो दुविहो-उजुगदिपुव्वओ विग्गहगदिपुव्वओ चेदि। तत्थ एक्केक्को दुविहो-मारणांतियसमुग्घादपुव्वओ तव्विवरीदओ चेदि।
= उपपाद दो प्रकार है-ऋजुगतिपूर्वक और विग्रहगतिपूर्वक। इनमें प्रत्येक मारणांतिक समुद्घातपूर्वक और तद्विपरीत के भेद से दो-दो प्रकार है।
• उपपाद जन्म संबंधी अन्य विषय - देखें जन्म - 2।
पुराणकोष से
देव और नारकियों का जन्म । पद्मपुराण 105.150