ग्रंथ: Difference between revisions
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<span class="GRef"> तत्त्वार्थसूत्र/7/29 </span></span><span class="SanskritText">क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमा:।29।</span>=<span class="HindiText">क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दास, कुप्य इन नौ के परिणाम का अतिक्रम करना परिग्रह परिमाण व्रत के पाँच अतिचार हैं। (<span class="GRef"> परमात्मप्रकाश/ </span>पू./2/49) </span><BR><span class="GRef"> दर्शनपाहुड़/ </span>टी./14/15 पर उद्धृत=<span class="SanskritText">क्षेत्रं वास्तु धनं धान्यं द्विपदं च चतुष्पदं। कुप्यं भांडं हिरण्यं च सुवर्णं च बहिर्दश।1।</span>=<span class="HindiText">क्षेत्र-वास्तु; धन-धान्य, द्विपद-चतुष्पद; कुप्य–भांड; हिरण्य-सुवर्ण–ये दश बाह्य परिग्रह है। </span></li> | |||
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<span class="GRef"> धवला 9/4,1,67/322/10 </span><span class="SanskritText">हस्त्यश्व–तंत्र-कौटिल्य-वात्सायनादिबोधो लौकिकभावश्रुतग्रंथ:। द्वादशांगदिबोधो वैदिकभावश्रुतग्रंथ:। नैयायिकवैशेषिकलोकायतसांख्यमीमांसकबौद्धादिदर्शनविषयबोध: सामायिकभावश्रुतग्रंथ:। एदेसिं सद्दपबंधा अक्खरकव्वादीणं जा च गंथरयणा अक्षरकाव्यैर्ग्रंथरचना प्रतिपाद्यविषया सा सुदगंथकदी णाम।</span>=<span class="HindiText">(नाम स्थापना आदि भेदों के लक्षणों के लिए देखें [[ निक्षेप_2 ]])–हाथी, अश्व, तंत्र, कौटिल्य, अर्थशास्त्र और वात्सायन कामशास्त्र आदि विषयक ज्ञान लौकिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। द्वादशांगादि विषयक बोध वैदिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। तथा नैयायिक, वैशेषिक, लोकायत, सांख्य, मीमांसक और बौद्ध इत्यादि दर्शनों को विषय करने वाला बोध सामायिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। इनकी शब्द संदर्भ रूप | <span class="GRef"> धवला 9/4,1,67/322/10 </span><span class="SanskritText">हस्त्यश्व–तंत्र-कौटिल्य-वात्सायनादिबोधो लौकिकभावश्रुतग्रंथ:। द्वादशांगदिबोधो वैदिकभावश्रुतग्रंथ:। नैयायिकवैशेषिकलोकायतसांख्यमीमांसकबौद्धादिदर्शनविषयबोध: सामायिकभावश्रुतग्रंथ:। एदेसिं सद्दपबंधा अक्खरकव्वादीणं जा च गंथरयणा अक्षरकाव्यैर्ग्रंथरचना प्रतिपाद्यविषया सा सुदगंथकदी णाम।</span>=<span class="HindiText">(नाम स्थापना आदि भेदों के लक्षणों के लिए देखें [[ निक्षेप_2 ]])–हाथी, अश्व, तंत्र, कौटिल्य, अर्थशास्त्र और वात्सायन कामशास्त्र आदि विषयक ज्ञान लौकिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। द्वादशांगादि विषयक बोध वैदिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। तथा नैयायिक, वैशेषिक, लोकायत, सांख्य, मीमांसक और बौद्ध इत्यादि दर्शनों को विषय करने वाला बोध सामायिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। इनकी शब्द संदर्भ रूप अक्षर-काव्यों द्वारा प्रतिपाद्य अर्थ को विषय करने वाली जो ग्रंथ रचना की जाती है। वह श्रुत ग्रंथकृति कही जाती है। (निक्षेपों रूप भेदों संबंधी–देखें [[ निक्षेप_2 ]])। </span></li> | ||
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Revision as of 08:31, 1 September 2022
सिद्धांतकोष से
- ग्रंथ सामान्य का लक्षण
धवला 9/4,1,54/259/10 "गणहरदेवविरइददव्वसुदं गंथो"।=गणधर देव से रचा गया द्रव्यश्रुत ग्रंथ कहा जाता है।
धवला 9/4,1,67/323/7 ववहारणयं पडुच्च खेत्तादी गंथो, अब्भंतरगंथकारणत्तादो। एदस्स परिहरणं णिग्गंथत्तं। णिच्छयणयं पडुच्च मिच्छत्तादी गंथो, कम्मबंधकारणत्तादो। तेसिं परिच्चागो णिग्गंथत्तं। = व्यवहार नय की अपेक्षा क्षेत्रादि ग्रंथ हैं, क्योंकि वे अभ्यंतर ग्रंथ के कारण हैं और इनका त्याग करना निर्ग्रंथता है। निश्चयनय की अपेक्षा मिथ्यात्वादिक ग्रंथ हैं, क्योंकि, वे कर्मबंध के कारण हैं और इनका त्याग करना निर्ग्रंथता है।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/43/141/20 ग्रंथंति रचयंति दीर्घीकुर्वंति संसारमिति ग्रंथा:। मिथ्यादर्शनं मिथ्याज्ञानं असंयम: कषाया: अशुभयोगत्रयं चेत्यमी परिणामा:। =जो संसार को गूँथते हैं अर्थात् जो संसार की रचना करते हैं, जो संसार को दीर्घकाल तक रहने वाला करते हैं, उनको ग्रंथ कहना चाहिए। (तथा)–मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, असंयम, कषाय, अशुभ मन वचन काय योग, इन परिणामों को आचार्य ग्रंथ कहते हैं। - ग्रंथ के भेद-प्रभेद—
धवला 9/4,1,67/322-323
चार्ट
(मू.आ./407-408); ( भगवती आराधना/1118-1119/1124 ); ( पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय 116 में केवल अंतरंगवाले 14 भेद); (ज्ञानार्णव/16/4+6 में उद्धृत)।
तत्त्वार्थसूत्र/7/29 क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमा:।29।=क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दास, कुप्य इन नौ के परिणाम का अतिक्रम करना परिग्रह परिमाण व्रत के पाँच अतिचार हैं। ( परमात्मप्रकाश/ पू./2/49)
दर्शनपाहुड़/ टी./14/15 पर उद्धृत=क्षेत्रं वास्तु धनं धान्यं द्विपदं च चतुष्पदं। कुप्यं भांडं हिरण्यं च सुवर्णं च बहिर्दश।1।=क्षेत्र-वास्तु; धन-धान्य, द्विपद-चतुष्पद; कुप्य–भांड; हिरण्य-सुवर्ण–ये दश बाह्य परिग्रह है। - ग्रंथ के भेदों के लक्षण
धवला 9/4,1,67/322/10 हस्त्यश्व–तंत्र-कौटिल्य-वात्सायनादिबोधो लौकिकभावश्रुतग्रंथ:। द्वादशांगदिबोधो वैदिकभावश्रुतग्रंथ:। नैयायिकवैशेषिकलोकायतसांख्यमीमांसकबौद्धादिदर्शनविषयबोध: सामायिकभावश्रुतग्रंथ:। एदेसिं सद्दपबंधा अक्खरकव्वादीणं जा च गंथरयणा अक्षरकाव्यैर्ग्रंथरचना प्रतिपाद्यविषया सा सुदगंथकदी णाम।=(नाम स्थापना आदि भेदों के लक्षणों के लिए देखें निक्षेप_2 )–हाथी, अश्व, तंत्र, कौटिल्य, अर्थशास्त्र और वात्सायन कामशास्त्र आदि विषयक ज्ञान लौकिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। द्वादशांगादि विषयक बोध वैदिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। तथा नैयायिक, वैशेषिक, लोकायत, सांख्य, मीमांसक और बौद्ध इत्यादि दर्शनों को विषय करने वाला बोध सामायिक भावश्रुत ग्रंथकृति है। इनकी शब्द संदर्भ रूप अक्षर-काव्यों द्वारा प्रतिपाद्य अर्थ को विषय करने वाली जो ग्रंथ रचना की जाती है। वह श्रुत ग्रंथकृति कही जाती है। (निक्षेपों रूप भेदों संबंधी–देखें निक्षेप_2 )।
- परिग्रह संबंधी विषय–देखें परिग्रह ।
पुराणकोष से
परिग्रह । यह दो प्रकार का होता है― अंतरंग और बहिरंग । महापुराण 67.13, पद्मपुराण 89.111