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| ! प्रमाण !! प्रमाण !! आबाधा काल जघन्य !! आबाधा काल उत्कृष्ट
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| | <big>1. उदय अपेक्षा</big>|| || ||
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| | <span class="GRef">गो.क/भा.150/185</span>|| संज्ञी पंचे. का मिथ्यात्व कर्म|| समयोनमुहूर्त|| 7000 वर्ष
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| | मू.156/189|| आयुके बिना 7 कर्मों की सामान्य आबाधा|| प्रतिसागर स्थिति पर साधिक सं.उच्छ्वास|| प्रति को.को. सागर पर 100 वर्ष, ( धवला पुस्तक 6/172)
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| | धवला पुस्तक 6/166/13|| आयुकर्म (बद्ध्यमान)|| असंक्षेपाद्धा अंतर्मुहूर्त आ/असं. || कोडि पूर्व वर्ष/3
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| | गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 917|| आयुकर्मका सामान्य नियम|| आयु बंध भये पीछे शेष भुज्यमानायु|| Example
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| | गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 916|| 92592592 16\27 कोड सा.वाला कर्म|| अंतर्मुहूर्त सं.|| अंतर्मुहूर्त
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| | <big>2. उदीरणा अपेक्षा</big>
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| | गो.मू.159|| आयु बिना 7 कर्मोंकी|| आवली || X
| | <p>एकेंद्रिय जीवों के 42 भेद हैं-<br> |
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| | पृथ्वी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, और प्रत्येक वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद - सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इस तरह एकेंद्रिय जीवों के सात भेद हुए। <br> |
| | गो.मू.918|| बध्यमानायु || X|| X
| | इन सात के सूक्ष्म व बादर की अपेक्षा 14 भेद हुए। <br> |
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| | ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।</p> |
| | | <p>(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।</p> |
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| |+ आस्त्रव के भेद प्रभेद <span class="GRef"> नयचक्र बृहद्/ </span>मू.आस्रव 152)<
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| | द्रव्यास्त्रव || || भावास्त्रव <span class="GRef">तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 6/4 </span> <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/4/320/8</span>|| भावास्त्रव ||
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| | || || ईर्यापथ भावास्त्रव || सांपरायिक भावास्त्रव
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| | || || || दृष्टि नं.1. इंद्रिय, कषाय, अव्रत और 25 क्रिया रूप भेद <span class="GRef">( तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 6/5), ( तत्त्वार्थसार अधिकार 4/8) </span>
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| | || || || दृष्टि नं.2. मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग <span class="GRef"> ( बारसाणुवेक्खा गाथा 47), ( समयसार / मूल या टीका गाथा 164), ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 786) </span>
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| | || || || दृष्टि नं.3. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग <span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह/ बृ.मू.30, अनगार धर्मामृत अधिकार 2/37 </span>
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| | || || ||दृष्टि नं.4. शुभ और अशुभ -- मन वचन काय रूप <span class="GRef"> राजवार्तिक अध्याय 1/14/39/25 </span>
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| |+ <strong> आहार के भेद प्रभेद <strong>
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| ! कर्माहारादि !!खाद्यादि !! कांजी आदि !! पानकादि
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| | 1|| 2|| 3|| 4
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| | कर्माहार || अशन || कांजी || स्वच्छ
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| | नोकर्माहार || पान || आंवली || बहल
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| | कवलाहार || भक्ष्य या खाद्य|| आचाम्ल || लेवड़
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| | लेप्याहार || लेह्य || बेलड़ी || अलेवड़
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| | ओजाहर || स्वाद्य|| एकलटाना || ससिक्थ
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| | मानसाहार || --|| --|| असिक्थ
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एकेंद्रिय जीवों के 42 भेद हैं-
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, और प्रत्येक वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद - सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इस तरह एकेंद्रिय जीवों के सात भेद हुए।
इन सात के सूक्ष्म व बादर की अपेक्षा 14 भेद हुए।
ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।
(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।