असिद्धत्व: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 2/6/7/109/18 अनादिकर्म बंधसंतानपरतंत्रस्यात्मनः कर्मोदयसामान्ये सति असिद्धत्वपर्यायो | <p class="SanskritText">राजवार्तिक अध्याय 2/6/7/109/18 अनादिकर्म बंधसंतानपरतंत्रस्यात्मनः कर्मोदयसामान्ये सति असिद्धत्वपर्यायो भवतीत्यौदयिकः स। पुनर्मिथ्यादृष्ट्यादिषु सूक्ष्मसांपरायिकान्तेषु कर्माष्टकोदयापेक्षः, शांतक्षीणकषाययोः सप्तकर्मोदयापेक्षः, सयोगिकेवल्ययोगिकेवलिनोरघातिकर्मोदयापेक्षः।</p> | ||
<p class="HindiText">= अनादि कर्मबद्ध | <p class="HindiText">= अनादि कर्मबद्ध आत्मा के सामान्यतः सभी कर्मों के उदय से असिद्ध पर्याय होती है। दसवें गुणस्थान तक आठों कर्मो के उदय से ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में मोहनीय के सिवाय सात कर्मों के उदयसे, और सयोगी और अयोगी में चार अघातिया कर्मो के उदय से असिद्धत्व भाव होता है।</p> | ||
<p>( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/6/159/9) ( धवला पुस्तक 5/1,7,1/189/6); </p> | <p>( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/6/159/9) ( धवला पुस्तक 5/1,7,1/189/6); </p> | ||
<p class="SanskritText">पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1143 नेदं सिद्धत्वमत्रेति स्यादसिद्धत्वमर्थतः।</p> | <p class="SanskritText">पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1143 नेदं सिद्धत्वमत्रेति स्यादसिद्धत्वमर्थतः।</p> | ||
<p class="HindiText">= संसार | <p class="HindiText">= संसार अवस्था में उक्त सिद्धभाव (अष्ट कर्मरहित अष्टगुण सहित) नहीं होता, इस कारण से यह असिद्धत्व कहलाता है।</p> | ||
<p>2. असिद्धत्व | <p>2. असिद्धत्व भाव को औदयिक कहने का कारण</p> | ||
<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 14/5,6,16/13/10 अघाइकम्मचउक्कोदयजणिदमसिद्धत्तं णाम।</p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 14/5,6,16/13/10 अघाइकम्मचउक्कोदयजणिदमसिद्धत्तं णाम।</p> | ||
<p class="HindiText">= चार अघाति | <p class="HindiText">= चार अघाति कर्मों के उदय से हुआ असिद्धत्व भाव है।</p> | ||
<p class="SanskritText">पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1141 असिद्धत्वं भवेद्भावो नूनमौदयिको मतः। व्यस्ताद्वा स्यात्समस्ताद्वा जातः कर्मष्टकोदयात् ॥1141॥</p> | <p class="SanskritText">पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1141 असिद्धत्वं भवेद्भावो नूनमौदयिको मतः। व्यस्ताद्वा स्यात्समस्ताद्वा जातः कर्मष्टकोदयात् ॥1141॥</p> | ||
<p class="HindiText">= असिद्धत्वभाव निश्चय करके औदयिकभाव होता है क्योंकि | <p class="HindiText">= असिद्धत्वभाव निश्चय करके औदयिकभाव होता है क्योंकि असमस्त रूप से अथवा समस्त रूप से आठों कर्मों के उदय से होता है।</p> | ||
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Revision as of 09:28, 7 September 2022
देखें पक्ष ।
राजवार्तिक अध्याय 2/6/7/109/18 अनादिकर्म बंधसंतानपरतंत्रस्यात्मनः कर्मोदयसामान्ये सति असिद्धत्वपर्यायो भवतीत्यौदयिकः स। पुनर्मिथ्यादृष्ट्यादिषु सूक्ष्मसांपरायिकान्तेषु कर्माष्टकोदयापेक्षः, शांतक्षीणकषाययोः सप्तकर्मोदयापेक्षः, सयोगिकेवल्ययोगिकेवलिनोरघातिकर्मोदयापेक्षः।
= अनादि कर्मबद्ध आत्मा के सामान्यतः सभी कर्मों के उदय से असिद्ध पर्याय होती है। दसवें गुणस्थान तक आठों कर्मो के उदय से ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में मोहनीय के सिवाय सात कर्मों के उदयसे, और सयोगी और अयोगी में चार अघातिया कर्मो के उदय से असिद्धत्व भाव होता है।
( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/6/159/9) ( धवला पुस्तक 5/1,7,1/189/6);
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1143 नेदं सिद्धत्वमत्रेति स्यादसिद्धत्वमर्थतः।
= संसार अवस्था में उक्त सिद्धभाव (अष्ट कर्मरहित अष्टगुण सहित) नहीं होता, इस कारण से यह असिद्धत्व कहलाता है।
2. असिद्धत्व भाव को औदयिक कहने का कारण
धवला पुस्तक 14/5,6,16/13/10 अघाइकम्मचउक्कोदयजणिदमसिद्धत्तं णाम।
= चार अघाति कर्मों के उदय से हुआ असिद्धत्व भाव है।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1141 असिद्धत्वं भवेद्भावो नूनमौदयिको मतः। व्यस्ताद्वा स्यात्समस्ताद्वा जातः कर्मष्टकोदयात् ॥1141॥
= असिद्धत्वभाव निश्चय करके औदयिकभाव होता है क्योंकि असमस्त रूप से अथवा समस्त रूप से आठों कर्मों के उदय से होता है।