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<p id="5">(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.62 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | <p id="5">(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.62 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | ||
<p id="6">(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह | <p id="6">(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह जलक्रीड़ा करता है और युद्ध में इसका अत्यधिक उपयोग होता है । <span class="GRef"> महापुराण 29.122 </span></p> | ||
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Revision as of 23:14, 7 September 2022
सिद्धांतकोष से
सनत्कुमार स्वर्ग का तृतीय पटल –देखें स्वर्ग - 5.3।
पुराणकोष से
(1) पाताल लोकवासी भवनवासी देव । इनकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य की होती है । पद्मपुराण 7.342 हरिवंशपुराण 4.63, 65-66
(2) इस नाम का एक नगर । यहाँ के राजा हरिपति और उसकी रानी मनोलूता का पुत्र कुलंकर हुआ । पद्मपुराण 85.49-51
(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । भरतेश का सेनापति विंध्याचल के प्रदेशों को जीतता हुआ यहाँ आया था और यहाँ से वह मलयपर्वत पर गया था । महापुराण 29. 88
(4) सानत्कुमार युगल का तीसरा इंद्रक । हरिवंशपुराण 6.48
(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । हरिवंशपुराण 1.62 वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47
(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह जलक्रीड़ा करता है और युद्ध में इसका अत्यधिक उपयोग होता है । महापुराण 29.122