वज्र: Difference between revisions
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<p id="4">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.47 </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | <p id="4">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.47 </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | ||
<p id="5">(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट । यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.690 </span></p> | <p id="5">(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट । यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.690 </span></p> | ||
<p id="6">(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन । यह पंद्रह योजन | <p id="6">(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन । यह पंद्रह योजन चौड़ा और पच्चीस योजन ऊँचा है । परिधि पैतालीस योजन है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.319 </span></p> | ||
<p id="7">(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 347 </span></p> | <p id="7">(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 347 </span></p> | ||
<p id="8">(8) वृषभदेव के | <p id="8">(8) वृषभदेव के अड़सठवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.67 </span></p> | ||
<p id="9">(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र । यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 1. 43, 3. 158-160, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.243-244, 7.29, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.10 </span></p> | <p id="9">(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र । यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 1. 43, 3. 158-160, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.243-244, 7.29, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.10 </span></p> | ||
<p id="10">(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.33 </span></p> | <p id="10">(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.33 </span></p> | ||
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Revision as of 09:43, 14 September 2022
सिद्धांतकोष से
- नंदनवन, मानुषोत्तर पर्वत व रुचक पर्वत पर स्थित कूटों का नाम।−देखें लोक - 5.5।
- सौधर्म स्वर्ग का 25वाँ पटल−देखें स्वर्ग - 5.3।
- बौद्ध मतानुयायी एक राजा जिसने नालंदा मठ का निर्माण कराया। समय - ई. श. 5।
पुराणकोष से
(1) एक समरथ नृप । कृष्ण और जरासंध के युद्ध में यह यादवों का पक्षधर था । हरिवंशपुराण 50. 81- 82
(2) नौ अनुदिश विमानों में तीसरा विमान । हरिवंशपुराण 6. 63
(3) विद्याधर नमि का वंशज । यह राजा वज्रायुध का पुत्र और राजा सुवज्र का पिता था । पद्मपुराण 5.16-21, हरिवंशपुराण 13.22
(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल । हरिवंशपुराण 6.47 देखें सौधर्म
(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट । यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है । हरिवंशपुराण 5.690
(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन । यह पंद्रह योजन चौड़ा और पच्चीस योजन ऊँचा है । परिधि पैतालीस योजन है । हरिवंशपुराण 5.319
(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर । हरिवंशपुराण 60. 347
(8) वृषभदेव के अड़सठवें गणधर । हरिवंशपुराण 12.67
(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र । यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं । महापुराण 1. 43, 3. 158-160, पद्मपुराण 2.243-244, 7.29, हरिवंशपुराण 2.10
(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर । हरिवंशपुराण 17.33
(11) पुंडरीकिणीं नगरी का एक वैश्य इसकी स्त्री सुप्रभा और पुत्री सुमति थी । महापुराण 71. 366
(12) दशानन का अनुयायी एक विद्याधर राजा । यह मय का मंत्री था । पद्मपुराण 8.269-271