नंदिमित्र: Difference between revisions
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Revision as of 18:46, 17 September 2022
सिद्धांतकोष से
- श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप द्वितीय श्रुतकेवली थे।
समय ‒वी.नि.76-92 (ई.पू./451-435) दृष्टि नं.3 के अनुसार वी.नि.88-116 ‒देखें इतिहास - 4.4। - (महापुराण/66/श्लोक)‒ पूर्व भव.नं.2 में पिता द्वारा इनके चाचा को युवराज पद दिया गया। इन्होंने इसमें मंत्री का हाथ समझ उससे वैर बाँध लिया और, दीक्षा ले ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए।103-105। वर्तमान भव में सप्तम बलभद्र हुए।106। विशेष परिचय के लिए‒देखें शलका पुरुष - 3।
पुराणकोष से
(1) आगामी दूसरा नारायण । महापुराण 76.487, हरिवंशपुराण 60. 566
(2) सातवां बलभद्र । यह अवसर्पिणी काल के दुषमा-सुषमा नामक चौथे काल में जन्मा था । वाराणसी नगरी के राजा अग्निशिख और उसकी रानी अपराजिता इसके माता-पिता थे । दत्त नारायण इसका छोटा भाई था । इसकी आयु बत्तीस हजार वर्ष, शारीरिक अवगाहना बाईस धनुष और वर्ण चंद्रमा के समान था । बलींद्र द्वारा भद्रक्षीर नामक हाथी के माँगने पर यह उसका विरोधी हो गया था । इसने बलींद्र के पुत्र शतबली को मारा था । यह अपने भाई के वियोग से वैराग्य को प्राप्त होकर संभूत मुनि से दीक्षित हुआ तथा केवली होकर मोक्ष गया । महापुराण 66.102-112, 118-123, हरिवंशपुराण 60 290, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.111
(3) वृषभदेव के बयासीवें गणधर । महापुराण 43.66, हरिवंशपुराण 12.69
(4) महावीर के निर्वाण के पश्चात् बासठ वर्ष के बाद सौ वर्ष के काल में हुए विशुद्धि के धारक अनेक नयों से विचित्र अर्थों के निरूपक, पूर्ण श्रुतज्ञान को प्राप्त, पाँच श्रुतकेवली मुनियों में चौदह पूर्व के ज्ञाता दूसरे मुनि । इनके पूर्व नंदि तथा बाद मे क्रमश: अपराजित गोवर्धन और भद्रबाहु हुए । महापुराण 2.139-142, 76.518 —521, हरिवंशपुराण 1.61, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41 -44
(5) पाटलिग्रामवासी वैश्य नागदत्त और सुमति का द्वितीय पुत्र । यह नंद का अनुज तथा नंदिषेण, वरसेन और जयसेन का अग्रज था । इसकी तीन बहिनें थी― मदनकांता, श्रीकांता और निनामा । महापुराण 6.128-130
(6) अयोध्या का एक गोपाल । ऐरावत क्षेत्र के भद्र और धन्य दोनों भाई मरकर इसके यहाँ भैंसे हुए थे । महापुराण 63. 157-160
(7) तीसरे बलभद्र के पूर्वभव का जीव । इसकी जन्मभूमि आनंदपुरी और गुरु सुव्रत थे । अनुत्तर विमान से चयकर यह बलभद्र हुआ । इस पर्याय मे इसकी माता सुवेश भी । गुरु सुभद्र से दीक्षित होकर इसने निर्वाण प्राप्त किया था । महापुराण 20.230-248