अध्यात्म: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ. 525 निजशुद्धात्मनि विशुद्धाधारभूतेऽनुष्ठानमध्यात्मम्। </p> | <p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ. 525 निजशुद्धात्मनि विशुद्धाधारभूतेऽनुष्ठानमध्यात्मम्। </p> | ||
<p class="HindiText">= अपने शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान या आचरण अध्यात्म है।</p> | <p class="HindiText">= अपने शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान या आचरण अध्यात्म है।</p><br> | ||
<p class="SanskritText">पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ.255/10 अर्थपदानामभेदरत्नत्रयप्रतिपादकानामनुकूलं यत्र व्याख्यानं क्रियते तदध्यात्मशास्त्रं भण्यते। </p> | <p class="SanskritText">पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ.255/10 अर्थपदानामभेदरत्नत्रयप्रतिपादकानामनुकूलं यत्र व्याख्यानं क्रियते तदध्यात्मशास्त्रं भण्यते। </p> | ||
<p class="HindiText">= अभेद रूप रत्नत्रय के प्रतिपादक अर्थ और पदों के अनुकूल जहाँ व्याख्यान किया जाता है उसे अध्यात्म शास्त्र कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= अभेद रूप रत्नत्रय के प्रतिपादक अर्थ और पदों के अनुकूल जहाँ व्याख्यान किया जाता है उसे अध्यात्म शास्त्र कहते हैं।</p><br> | ||
<p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 57/238 मिथ्यात्वरागादिसमस्तविकल्पजालरूपपरिहारेणस्वशुद्धात्मन्यनुष्ठानं तदध्यात्ममिति। </p> | <p class="SanskritText">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 57/238 मिथ्यात्वरागादिसमस्तविकल्पजालरूपपरिहारेणस्वशुद्धात्मन्यनुष्ठानं तदध्यात्ममिति। </p> | ||
<p class="HindiText">= मिथ्यात्वरागादि समस्त विकल्प समूह के त्याग द्वारा निज शुद्धात्मा में जो अनुष्ठान प्रवृत्ति करना, उसको अध्यात्म कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= मिथ्यात्वरागादि समस्त विकल्प समूह के त्याग द्वारा निज शुद्धात्मा में जो अनुष्ठान प्रवृत्ति करना, उसको अध्यात्म कहते हैं।</p> | ||
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Revision as of 16:43, 20 September 2022
सिद्धांतकोष से
समयसार / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ. 525 निजशुद्धात्मनि विशुद्धाधारभूतेऽनुष्ठानमध्यात्मम्।
= अपने शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान या आचरण अध्यात्म है।
पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / परिशिष्ट /पृ.255/10 अर्थपदानामभेदरत्नत्रयप्रतिपादकानामनुकूलं यत्र व्याख्यानं क्रियते तदध्यात्मशास्त्रं भण्यते।
= अभेद रूप रत्नत्रय के प्रतिपादक अर्थ और पदों के अनुकूल जहाँ व्याख्यान किया जाता है उसे अध्यात्म शास्त्र कहते हैं।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 57/238 मिथ्यात्वरागादिसमस्तविकल्पजालरूपपरिहारेणस्वशुद्धात्मन्यनुष्ठानं तदध्यात्ममिति।
= मिथ्यात्वरागादि समस्त विकल्प समूह के त्याग द्वारा निज शुद्धात्मा में जो अनुष्ठान प्रवृत्ति करना, उसको अध्यात्म कहते हैं।
सूत्रपाहुड़/6/ पं जयचंद "जहाँ एक आत्मा के आश्रयनिरूपण करिये सो अध्यात्म है।"
पुराणकोष से
निद्वेंद्ववृति-विकल्परहित शुद्धात्मपरक चितवृति महापुराण 36.156