जाति (सामान्य): Difference between revisions
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Revision as of 19:03, 21 September 2022
- लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./2/2/66 समानप्रवासात्मिका जाति:।66। =द्रव्यों के आपस में भेद रहते भी जिससे समान बुद्धि उत्पन्न हो उसे जाति कहते हैं।
राजवार्तिक/1/33/5/95/26 बुद्धयभिधानानुप्रवृत्तिलिंगं सादृश्यं स्वरूपानुगमो वा जाति:, सा चेतनाचेतनाद्यात्मिका शब्दप्रवृत्तिनिमित्तत्वेन प्रतिनियमात् स्वार्थव्यपदेशभाक् । =अनुगताकार बुद्धि और अनुगत शब्द प्रयोग का विषयभूत सादृश्य या स्वरूप जाति है। चेतन की जाति चेतनत्व और अचेतन की जाति अचेतनत्व है क्योंकि यह अपने-अपने प्रतिनियत पदार्थ के ही द्योतक हैं।
धवला/1/1,1,1/17/5 तत्थ जाई तब्भवसारिच्छ-लक्खण-सामण्णं।
धवला/1/1,1,1/18/3 तत्थ जाइणिमित्तं णाम गो-मणुस्स-घड-पड-त्थंभ-वेत्तादि। =तद्भव और सादृश्य लक्षण वाले सामान्य को जाति कहते हैं। गौ, मनुष्य, घट, पट, स्तंभ और वेत इत्यादि जाति निमित्तक नाम है।
- जीवों की जातियों का निर्देश
धवला/2/1,1/419/4 एइंदियादी पंच जादीओ, अदीदजादि विअत्थि। =एकेंद्रियादि पाँच जातियाँ होती हैं और अतीत जातिरूप स्थान भी है।
- चार उत्तम जातियों का निर्देश
महापुराण/39/168 जातिरैंद्री भवेद्दिव्या चक्रिणां विजयाश्रिता। परमा जातिरार्हंत्ये स्वात्मोत्था सिद्धिमीयुषाम् । =जाति चार प्रकार की हैं–दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा। इंद्र के दिव्या जाति होती हैं, चक्रवर्तियों के विजयाश्रिता, अर्हंतदेव के परमा और मुक्त जीवों को स्वा जाति होती है।
जाती नामकर्म के लिए देखें - जाति (नामकर्म)