खदिरसार: Difference between revisions
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Revision as of 15:02, 22 September 2022
सिद्धांतकोष से
महापुराण/74/ श्लोक विंध्याचल पर्वतपर एक भील था। मुनिराज के समीप कौवे के मांस का त्याग किया।(386-396) प्राण जाते भी नियम का पालन किया। अंत में मरकर सौधर्मस्वर्ग में देव हुआ (410)। यह श्रेणिक राजा का पूर्व का तीसरा भव है।–देखें श्रेणिक
पुराणकोष से
जंबूद्वीपस्थ विंध्याचल पर्वत के कुटज या कुटव वन का निवासी भील । यह राजा श्रेणिक के तीसरे पूर्वभव का जीव था । इसने समाधिगुप्त योगी से काकमांस न खाने का नियम लिया था । असाध्यरोग होने तथा उसके उपचार हेतु काक-मांस बताये जाने पर भी इसने उस मांस को नहीं खाया । अपने व्रत का निर्वाह करते हुए इसने समाधिमरण किया और यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर श्रेणिक हुआ । महापुराण 74. 386-418, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.96-112, 120-126, 134-135