वासना: Difference between revisions
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<li> | <li> <span class="GRef"> समाधिशतक/टीका/37 </span><span class="SanskritText">शरीरादौ शुचिस्थिरात्मीयादिज्ञानान्यविद्यास्तासामभ्यासः पुनः पुनः प्रवृत्तिस्तेन जनिताः संस्कारा वासनाः।</span> =<span class="HindiText"> शरीरादि को शुचि, स्थिर और आत्मीय मानने रूप जो अविद्या अज्ञान है उसके पुनः पुनः प्रवृत्तिरूप अभ्यास से उत्पन्न संस्कार वासना कहलाते हैं। <br /> | ||
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Revision as of 08:16, 7 October 2022
- समाधिशतक/टीका/37 शरीरादौ शुचिस्थिरात्मीयादिज्ञानान्यविद्यास्तासामभ्यासः पुनः पुनः प्रवृत्तिस्तेन जनिताः संस्कारा वासनाः। = शरीरादि को शुचि, स्थिर और आत्मीय मानने रूप जो अविद्या अज्ञान है उसके पुनः पुनः प्रवृत्तिरूप अभ्यास से उत्पन्न संस्कार वासना कहलाते हैं।
- अनंतानुबंधी आदि कषायों का वासनाकाल –देखें वह वह नाम ।