मनोरमा: Difference between revisions
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<li> वरांगचरित्र/सर्ग/श्लोक–राजा देवसेन की पुत्री थी। वरांग पर मोहित हो गयी।(19/40)। वरांग के साथ विवाह हुआ।(20/42)। अंत में दीक्षा धारण की।(29/14)। तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेद देव हुआ।(31/114)।</li> | <li> वरांगचरित्र/सर्ग/श्लोक–राजा देवसेन की पुत्री थी। वरांग पर मोहित हो गयी।(19/40)। वरांग के साथ विवाह हुआ।(20/42)। अंत में दीक्षा धारण की।(29/14)। तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेद देव हुआ।(31/114)।</li> | ||
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित मेघपुर नगर के राजा पवनवेग और उसका रानी मनोहरी की पुत्री । यह पूर्वभव में राजा सुमुख की रानी वनमाला थी । इसका विवाह पूर्वभव के पति सुमुख के जीव आर्य के साथ हुआ था । इस आर्य विद्याधर को हरिक्षेत्र में इसके साथ | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित मेघपुर नगर के राजा पवनवेग और उसका रानी मनोहरी की पुत्री । यह पूर्वभव में राजा सुमुख की रानी वनमाला थी । इसका विवाह पूर्वभव के पति सुमुख के जीव आर्य के साथ हुआ था । इस आर्य विद्याधर को हरिक्षेत्र में इसके साथ क्रीड़ा करते हुए देखकर इसके पूर्वभव का पति देव पूर्व वैरवश इसके इस भव के पति आर्य विद्याधर की विद्या हरकर इसे और इसके पति को चंपापुरी लाया था । उसने इसके पति को चंपापुरी का राजा बनाकर वहीं छोड़ दिया । हरि इसका पुत्र था । इसी हरि के नाम से जगत् में हरिवंश नाम की प्रसिद्धि हुई । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 15.25-27, 33, 48-58 </span></p> | ||
<p id="2">(2) चक्रवर्ती अभयघोष की पुत्री । इसका विवाह अभयघोष के भानजे सुविधि के साथ हुआ था । केशव इसका पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 10. 143-145 </span></p> | <p id="2">(2) चक्रवर्ती अभयघोष की पुत्री । इसका विवाह अभयघोष के भानजे सुविधि के साथ हुआ था । केशव इसका पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 10. 143-145 </span></p> | ||
<p id="3">(3) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा धनरथ की दूसरी रानी और | <p id="3">(3) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा धनरथ की दूसरी रानी और दृढ़रथ की जननी । <span class="GRef"> महापुराण 63. 144, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.55 </span></p> | ||
<p id="4">(4) धनरथ के पुत्र मेषरथ की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 63.147, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.26 </span></p> | <p id="4">(4) धनरथ के पुत्र मेषरथ की रानी । <span class="GRef"> महापुराण 63.147, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.26 </span></p> | ||
<p id="5">(5) विजयार्ध पर स्थित अलका नगरी के राजकुमार विद्याधर सिंहरथ की स्त्री । इसके पति के विमान की गति रुक जाने पर मेघरथ को इसका कारण जानकर इसके पति ने शिला सहित मेघरथ को उठाकर फेंकना चाहा था किंतु मेघरथ ने अंगूठे से शिला दबा दी थी जिससे इसका पति रोने लगा था । रुदन सुनकर इसने मेघरथ से पति-भिक्षा मांगी और अपने पति को शिला के नीचे दबाये जाने से बचाया । <span class="GRef"> महापुराण 63.241-244, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.61-68 </span></p> | <p id="5">(5) विजयार्ध पर स्थित अलका नगरी के राजकुमार विद्याधर सिंहरथ की स्त्री । इसके पति के विमान की गति रुक जाने पर मेघरथ को इसका कारण जानकर इसके पति ने शिला सहित मेघरथ को उठाकर फेंकना चाहा था किंतु मेघरथ ने अंगूठे से शिला दबा दी थी जिससे इसका पति रोने लगा था । रुदन सुनकर इसने मेघरथ से पति-भिक्षा मांगी और अपने पति को शिला के नीचे दबाये जाने से बचाया । <span class="GRef"> महापुराण 63.241-244, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.61-68 </span></p> | ||
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Revision as of 22:56, 13 October 2022
सिद्धांतकोष से
- हरिवंशपुराण/15/ श्लोक नं. विजयार्ध पर मेघपुर के राजा पवनवेग की पुत्री थी।27। इसका विवाह राजा सुमुख के जीव के साथ हुआ, जिसने पूर्व में इसका हरण कर लिया था।33। पूर्व जन्म का असली पति जो उसके वियोग में दीक्षित होकर देव हो गया था, पूर्व वैर के कारण उन दोनों को उठाकर चंपापुर नगर में छोड़ गया और इनकी सारी विद्याएँ हरकर ले गया। वहाँ उनके हरि नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने हरिवंश की स्थापना की।38-58।
- वरांगचरित्र/सर्ग/श्लोक–राजा देवसेन की पुत्री थी। वरांग पर मोहित हो गयी।(19/40)। वरांग के साथ विवाह हुआ।(20/42)। अंत में दीक्षा धारण की।(29/14)। तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेद देव हुआ।(31/114)।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित मेघपुर नगर के राजा पवनवेग और उसका रानी मनोहरी की पुत्री । यह पूर्वभव में राजा सुमुख की रानी वनमाला थी । इसका विवाह पूर्वभव के पति सुमुख के जीव आर्य के साथ हुआ था । इस आर्य विद्याधर को हरिक्षेत्र में इसके साथ क्रीड़ा करते हुए देखकर इसके पूर्वभव का पति देव पूर्व वैरवश इसके इस भव के पति आर्य विद्याधर की विद्या हरकर इसे और इसके पति को चंपापुरी लाया था । उसने इसके पति को चंपापुरी का राजा बनाकर वहीं छोड़ दिया । हरि इसका पुत्र था । इसी हरि के नाम से जगत् में हरिवंश नाम की प्रसिद्धि हुई । हरिवंशपुराण 15.25-27, 33, 48-58
(2) चक्रवर्ती अभयघोष की पुत्री । इसका विवाह अभयघोष के भानजे सुविधि के साथ हुआ था । केशव इसका पुत्र था । महापुराण 10. 143-145
(3) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा धनरथ की दूसरी रानी और दृढ़रथ की जननी । महापुराण 63. 144, पांडवपुराण 5.55
(4) धनरथ के पुत्र मेषरथ की रानी । महापुराण 63.147, पांडवपुराण 5.26
(5) विजयार्ध पर स्थित अलका नगरी के राजकुमार विद्याधर सिंहरथ की स्त्री । इसके पति के विमान की गति रुक जाने पर मेघरथ को इसका कारण जानकर इसके पति ने शिला सहित मेघरथ को उठाकर फेंकना चाहा था किंतु मेघरथ ने अंगूठे से शिला दबा दी थी जिससे इसका पति रोने लगा था । रुदन सुनकर इसने मेघरथ से पति-भिक्षा मांगी और अपने पति को शिला के नीचे दबाये जाने से बचाया । महापुराण 63.241-244, पांडवपुराण 5.61-68
(6) धातकीखंड द्वीप की पूर्व दिशा संबंधी विदेहक्षेत्र के पूर्वभाग में स्थित पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र की रानी और प्रियमित्र की जननी । महापुराण 74.235-237
(7) लक्ष्मण की पटरानी । यह जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी विजयार्ध की दक्षिण दिशा में स्थित रत्नपुर नगर के राजा रत्नरथ और रानी चंद्रानना की पुत्री थी । इसके विवाह के संबंध में अवद्वार नारद के द्वारा लक्ष्मण का नाम प्रस्तावित किये जाने पर इसके तीनों भाई― हरिवेग, मनोवेग और वायुवेग कुपित हो गये थे । नारद द्वारा यह समाचार लक्ष्मण से कहे जाने पर लक्ष्मण भी कुपित हुआ । उसने युद्ध में इसके भाइयों और पिता का पीछा किया । यह कन्या इसी बीच लक्ष्मण के समीप आयी । रत्नरथ ने अंत में इसका विवाह लक्ष्मण से कर दिया । यह लक्ष्मण की प्रमुख आठ रानियों में आठवीं रानी थी । सुपार्श्वकीर्ति इसका पुत्र था । पद्मपुराण 1. 94, 83-95, 93.1-56, 94.20-23
(8) विद्याधर अमितगति की दूसरी स्त्री । इन दोनों के सिंहयश और वाराहग्रीव दो पुत्र थे । हरिवंशपुराण 21. 118-121