खरकर्म
From जैनकोष
( सागार धर्मामृत/5/21-23 ) व्रतयेत्खरकर्मात्र मलान् पंचदश त्यजेत् । वृत्तिं वनाग्ंयनस्स्फोटभाटकैर्यंत्रपीडनम् ।21। निर्लांछनासतीपोषौ सर:-शोषं दवप्रदाम् । विषलाक्षादंतकेशरसवाणिज्यमंगिरुक् ।22। इति केचिन्न तच्चारु लोके सावद्यकर्मणाम् । अगण्यत्वात्प्रणेयं वा तदप्यतिजडान् प्रति।23। = श्रावकों को प्राणियों को दु:ख देने वाले खर कर्म अर्थात् क्रूर व्यापार सब छोड़ देने चाहिए, तथा उनके पंद्रह अतिचार भी छोड़ने चाहिए। वे 15 कर्म ये हैं-1. वनजीविका, 2.अग्निजीविका, 3. अनोजीविका (शकटजीविका), 4. स्फोटजीविका, 5. भाटजीविका, 6. यंत्रपीडन, 7. निर्लांछन, 8. असतीपोष, 9. सर:शोष, 10. दवप्रद, 11. विषवाणिज्य, 12. लाक्षावाणिज्य, 13. दंतवाणिज्य, 14. केशवाणिज्य और 15. रस वाणिज्य।21-23। अधिक जानकारी के लिए देखें सावद्य - 2.5।