दो
From जैनकोष
- यह जघन्य संख्या समझी जाती है।
- दो की संख्या अवक्तव्य कहलाती है।–
धवला पुस्तक 1/4,1,66/274/24दोरूवेसु वग्गिदेसु वड्ढिदंस णादो दोण्णं णणो कदित्तं। तत्तो मूलमवणिय वग्गिदे ण वड्टदि पुव्विल्लारासी होदि, तेण दोण्णं ण कदित्तं पि अत्थि। एदं मणेण अवहारिय दुवे अवत्तव्वमिदि वृत्तं। ऐसा विदियगणणजाई।
= दो रूपों का वर्ग करने पर चूँकि वृद्धि देखी जाती है, अतः दो को नोकृति नहीं कहा जा सकता और चूँकि उसके वर्ग में से मूल को कम करके वर्णित करने पर वह वृद्धि को प्राप्त नहीं होती, किन्तु पूर्वोक्त राशी ही रहती है, अतः 'दो' कृति भी नहीं हो सकता। इस बात को मन से निश्चितकर 'दो संख्या वक्तव्य है' ऐसा सूत्र में निर्दिष्ट किया है।
देखें अवक्तव्य ।