अंगबाह्य
From जैनकोष
श्रुत का दूसरा भेद - यह गणधरों के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा रचित श्रुत है । इसके चौदह भेद है― 1. सामायिक 2. जिनस्तव 3. वंदना 4. प्रतिक्रमण 5. वैनयिक 6. कृतिकर्म 7. दशवैकालिक 8. उत्तराध्ययन 9. कल्पव्यवहार 10. कल्पाकल्प 11. महाकल्प 12. पुंडरीक 13. महापुंडरीक और 14. निषद्यका । हरिवंशपुराण - 21.101-105 इसका अपरनाम प्रकीर्णक श्रुत है । इसमें आठ करोड एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अक्षर, एक करोड तेरह हजार पाँच सौ इक्कीस पद तथा पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । हरिवंशपुराण - 10.125-136