अक्षर ज्ञान
From जैनकोष
द्रव्य श्रुत का एक भेद - देखें अर्थलिंगज श्रुतज्ञान विशेष निर्देश II.1.1
- (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/316/676/3)
श्रुतज्ञानस्य अनक्षरात्मकाक्षरात्मकौ द्वौ भेदौ।
अनक्षरात्मक और अक्षरात्मक के भेद से श्रुतज्ञान के दो भेद हैं। [वाचक शब्द पर से वाच्यार्थ का ग्रहण अक्षरात्मक श्रुत है, और शीतादि स्पर्श में इष्टानिष्ट का होना अनक्षरात्मक श्रुत है।
- (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/315/673/19)
तत्र जीवोऽस्तीत्युक्ते जीवोऽस्तीति शब्दज्ञानं श्रोत्रेंद्रियप्रभवं मतिज्ञानं भवति ज्ञानेन जीवोऽस्तीति शब्दवाच्यरूपे आत्मास्तित्वे वाच्यवाचकसंबंधसंकेतसंकलनपूर्वकं यत् ज्ञानमुत्पद्यते तदक्षरात्मकं श्रुतज्ञानं भवति, अक्षरात्मकशब्दसमुत्पन्नत्वेन कार्ये कारणोपचारात् । वातशीतस्पर्शज्ञानेन वातप्रकृतिकस्य तत्स्पर्शे अमनोज्ञज्ञानमनक्षरात्मकं लिंगजं श्रुतज्ञानं भवति, शब्दपूर्वकत्वाभावात् ।
= 'जीव: अस्ति' ऐसा शब्द कहने पर कर्ण इंद्रिय रूप मतिज्ञान के द्वारा 'जीव: अस्ति' यह शब्द ग्रहण किया। इस शब्द से जो 'जीव नाम पदार्थ है' ऐसा ज्ञान हुआ सो श्रुतज्ञान है। शब्द और अर्थ के ऐसा वाच्य वाचक संबंध है। सो यहाँ 'जीव: अस्ति' ऐसे शब्द का जानना तो मतिज्ञान है, और उसके निमित्त से जीव नामक पदार्थ का जानना सो श्रुतज्ञान है। ऐसे ही सर्व अक्षरात्मक श्रुतज्ञान का स्वरूप जानना। अक्षरात्मक शब्द से समुत्पन्न ज्ञान, उसको भी अक्षरात्मक कहा। यहाँ पर कार्य में कारण का उपचार किया है, परमार्थ से ज्ञान कोई अक्षर रूप नहीं है। जैसे शीतल पवन का स्पर्श होने पर 'तहाँ शीतल पवन का जानना तो मतिज्ञान है, और उस ज्ञान से वायु की प्रकृतिवाले को यह पवन अनिष्ट हैं' ऐसा जानना श्रुतज्ञान है, सो यह अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान है, क्योंकि यह अक्षर के निमित्त से उत्पन्न नहीं हुआ है।
- अधिक जानकारी के लिए देखें श्रुतज्ञान - II।