अनुगम
From जैनकोष
धवला पुस्तक 3/1,2,1/8/6
यथावस्त्ववबोधः अनुगमः केवलिश्रुतकेवलिभिरनुगतानुरूपेणावगमो वा।
वस्तु के अनुरूप ज्ञान को अनुगम कहते हैं। अथवा केवली और श्रुतकेवलियों के द्वारा परंपरा से आये हुए अनुरूप ज्ञान को अनुगम कहते हैं।
धवला पुस्तक 9/4,1,45/141/6
जम्हि जेण वा वत्तव्वं परुविज्जदि सो अणुगमो। अहियारसण्णिदाणमणिओगद्दाराणं जे अहियारा तेसिमणुगमो त्ति सण्णा, जहा वेयणाए पदमीमांसादिः।....अथवा अनुगम्यंते जीवादयः पदार्थाः अनेनेत्यनुगमः प्रमाणम्।
1. जहाँ या जिसके द्वारा वक्तव्य की प्ररूपणा की जाती है, वह अनुगम कहलाता है।
2. अधिकार संज्ञा युक्त अनुयोग द्वारों के जो अधिकार होते हैं उनका `अनुगम' यह नाम है, जैसे-वेदनानुयोगद्वार के पद मीमांसा आदि अनुगम।
3. अथवा जिसके द्वारा जीवादि पदार्थ जाने जाते हैं वह अनुगम अर्थात् प्रमाण कहलाता है।
धवला पुस्तक 9/4,1,45/162/4
अथवा अनुगम्यंते परिच्छिद्यंत इति अनुगमाः षड्द्रव्याणि त्रिकोटिपरिणामात्मकपाषंड्यविषयविभ्राङ्भावरूपाणि प्राप्तजात्यंतराणि प्रमाणविषयतया अपसारितटुर्नयानि सविश्वरूपानंतपर्यायसप्रतिपक्षविविधनियतभंगात्मकसत्तास्वरूपाणीति प्रतिपत्तव्यम्। एवमणुगमपरूवणा कदा।
`अथवा जो जाने जाते हैं' इस निरुक्ति के अनुसार त्रिकोटि स्वरूप (द्रव्य, गुण, पर्याय स्वरूप) पाषंडियों के अविषय भूत अविभ्राड्भाव संबंध अर्थात् कथंचित् तादात्म्य सहित, जात्यंतर स्वरूप को प्राप्त, प्रमाण के विषय होने से दुर्नयों को दूर करने वाले, अपनी नानारूप अनंत पर्यायों की प्रतिपक्ष भूत असत्ता से सहित और उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य स्वरूप से संयुक्त, ऐसे छह द्रव्य अनुगम हैं, ऐसा जानना चाहिए। इस प्रकार अनुगम की प्ररूपणा की है।