कालानुयोग 11
From जैनकोष
11. अष्ट कर्म के चतु:अप्रशस्तोपशमना सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा
नं. |
विषय |
नानाजीवापेक्षया |
एकजीवापेक्षया |
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विषय |
पद विशेष |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
1 |
प्रकृति |
जघन्य उत्कृष्ट पद |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
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भुजगारादि पद |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
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वृद्धि हानि पद |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
ध.15/277 |
ध.15/278-280 |
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2 |
स्थिति |
जघन्य उत्कृष्ट पद |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
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भुजगारादि पद |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
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वृद्धि हानि पद |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
ध.15/281 |
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3 |
अनुभाग |
जघन्य उत्कृष्ट पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
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भुजगारादि पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
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वृद्धि हानि पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
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4 |
प्रदेश |
जघन्य उत्कृष्ट पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
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भुजगारादि पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
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वृद्धि हानि पद |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |
ध.15/282 |