अष्टांग निमित्तज्ञान
From जैनकोष
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तिलोयपण्णत्ति/4/1002,1015 णइमित्तिका य रिद्धी णभभउमंगंसराइ वेंजणयं। लक्खणचिण्हं सउणं अट्ठवियप्पेहिं वित्थरिदं।1002। तं चिय सउणणिमित्तं चिण्हो मालो त्ति दोभेदं।1015। =नैमित्तिक ऋद्धि नभ (अंतरिक्ष), भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, चिह्न (छिन्न), और स्वप्न इन आठ भेदों से विस्तृत है।1002। तहाँ स्वप्न निमित्तज्ञान के चिह्न और मालारूप से दो भेद हैं।1015। ( राजवार्तिक/1/20/12/76/8; राजवार्तिक/3/36/3/202/10; धवला 9/4,1,14/गा.19/72; धवला 9/4,1,14/72/2;73/6; चारित्रसार/214/3 )।
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