अयोध्या
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
1. अपर विदेहस्थ गंधमालिनी क्षेत्र की मुख्य नगरी- देखें लोक - 5.2;
2. अयोध्या, साकेत, सुकौशला और विनीता ये सब एक ही नगर के नाम हैं।
( महापुराण सर्ग संख्या 12/73)।
पुराणकोष से
(1) धातकीखंड द्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में स्थित गंधिक देश का नगर । जयवर्मा इस नगर का नृप था । महापुराण 7.40-41, 59.277
(2) जंबूद्वीप में आर्यखंड के कोशल देश की नगरी । यह नगरी सरयू नदी के किनारे इंद्र द्वारा नाभिराय और मरुदेवी के लिए रची गयी थी । सुकौशल देश में स्थित होने से इसे सुकौशल और विनीत लोगों की आवासभूमि होने से विनीता भी कहा गया है । यह अयोध्या इसलिए थी कि इसके सुयोजित निर्माण कौशल के कारण इसे शत्रु नहीं जीत सकते थे । सुंदर भवनों के निर्माण के कारण इसे साकेत भी कहा जाता था । यह नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लंबी और अड़तीस योजन परिधि की थी । बलभद्र राम यही जन्मे थे । महापुराण 12.69-82, 14.67-170, 71, 16.152, 29.47, 71.255-256, पद्मपुराण 81. 116-124, हरिवंशपुराण 9.42, 10.163, पांडवपुराण 2.108, वीरवर्द्धमान चरित्र 4.121
(3) जंबूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र की नगरी, राजा श्रीवर्मा की आवासभूमि । महापुराण 59.282
(4) धातकीखंड द्वीप के दक्षिण की ओर और इष्वाकार पर्वत से पूर्व की ओर रुचित अलका नामक देश का नगर । इस द्वीप में इस नाम के दो भिन्न-भिन्न नगर थे जिनमें गंधिल देश से संबंधित नगर में जयवर्मा तथा अलका देश से संबंधित नगर में जयवर्मा का पुत्र अतितंजय रहता था । महापुराण 7.40-41, 12. 76, 54.86-47
(5) विदेहक्षेत्र के गंधावत्सुगंधा देश की राजधानी । महापुराण 63. 208-217, हरिवंशपुराण 5.263