सिद्धांतकोष से
सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक |
18 |
चिह्न |
मत्स्य |
पिता |
सुदर्शन |
माता |
मित्रसेना |
वंश |
कुरु |
उत्सेध (ऊँचाई) |
30 धनुष |
वर्ण |
स्वर्ण |
आयु |
84000 वर्ष |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव |
धनपति |
पूर्व मनुष्य भव में क्या थे |
मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता |
घनरव |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर |
जम्बू वि.क्षेमपुरी |
पूर्व भव की देव पर्याय |
जयन्त |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि |
फाल्गुन कृष्ण 3 |
गर्भ-नक्षत्र |
रेवती |
गर्भ-काल |
अन्तिम रात्रि |
जन्म तिथि |
मार्गशीर्ष शुक्ल 14 |
जन्म नगरी |
हस्तनागपुर |
जन्म नक्षत्र |
रोहिणी |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण |
मेघ |
दीक्षा तिथि |
मार्गशीर्ष शुक्ल 10 |
दीक्षा नक्षत्र |
रेवती |
दीक्षा काल |
अपराह्न |
दीक्षोपवास |
तृतीय भक्त |
दीक्षा वन |
सहेतुक |
दीक्षा वृक्ष |
आम्र |
सह दीक्षित |
1000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि |
कार्तिक शुक्ल 12 |
केवलज्ञान नक्षत्र |
रेवती |
केवलोत्पत्ति काल |
अपराह्न |
केवल स्थान |
हस्तनागपुर |
केवल वन |
सहेतुक |
केवल वृक्ष |
आम्र |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल |
1 मास पूर्व |
निर्वाण तिथि |
चैत्र कृष्ण 15 |
निर्वाण नक्षत्र |
रोहिणी |
निर्वाण काल |
प्रात: |
निर्वाण क्षेत्र |
सम्मेद |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार |
3 1/2 योजन |
सह मुक्त |
1000 |
पूर्वधारी |
610 |
शिक्षक |
35835 |
अवधिज्ञानी |
2800 |
केवली |
2800 |
विक्रियाधारी |
4300 |
मन:पर्ययज्ञानी |
2055 |
वादी |
1600 |
सर्व ऋषि संख्या |
50000 |
गणधर संख्या |
30 |
मुख्य गणधर |
कुम्भ |
आर्यिका संख्या |
60000 |
मुख्य आर्यिका |
कुन्थुसेना |
श्रावक संख्या |
100000 |
मुख्य श्रोता |
सुभौम |
श्राविका संख्या |
300000 |
यक्ष |
कुबेर |
यक्षिणी |
जया |
आयु विभाग
आयु |
84000 वर्ष |
कुमारकाल |
21000 वर्ष |
विशेषता |
चक्रवर्ती |
राज्यकाल |
21000+21000 |
छद्मस्थ काल |
16 वर्ष |
केवलिकाल |
20984 वर्ष |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल |
1/4 पल्य+9999989000 वर्ष |
केवलोत्पत्ति अन्तराल |
9999966084 वर्ष 6 दिन |
निर्वाण अन्तराल |
1000 को.वर्ष |
तीर्थकाल |
9999966100 वर्ष |
तीर्थ व्युच्छित्ति |
❌ |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष |
चक्रवर्ती |
स्वयं, सुभौम |
बलदेव |
नन्दी |
नारायण |
पुण्डरीक |
प्रतिनारायण |
बलि |
रुद्र |
❌ |
1. पूर्व के भव में जयंत विमान में अहमिंद्र हुए। 8-1। वर्तमान भव में 18वें तीर्थंकर हुए। (विशेष देखें तीर्थंकर - 5) (युगपत् सर्व भव देखें [[ ]] महापुराण/65/50 )
2. ( महापुराण सर्ग संख्या 65/श्लोक नं.) पूर्व के तीसरे भव में कच्छदेश की क्षेमपुरी नगरी के राजा `धनपति' थे।
3. भावी बारहवें तीर्थंकर का भी यही नाम है। अपर नाम पूर्वबुद्धि है। (विशेष देखें तीर्थंकर - 5)
पुराणकोष से
अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, अठारहवें तीर्थंकर तथा सातवें चक्रवर्ती । ये सोलह स्वप्नपूर्वक फाल्गुन शुक्ला तृतीया के दिन रेवती नक्षत्र में रात्रि के पिछले प्रहर में भरतक्षेत्र में स्थित कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में सोमवंशी, काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन की रानी मित्रसेना के गर्भ में आये तथा मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी के दिन पुष्य नक्षत्र में मति, श्रुत और अवधिज्ञान सहित जन्मे थे । इनकी आयु चौरासी हजार वर्ष थी, शरीर तीस धनुष ऊँचा था और कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारावस्था के इक्कीस हजार वर्ष बीत जाने पर इन्हें मंडलेश्वर के योग्य राजपद प्राप्त हुआ था और जब इतना ही काल और बीत गया तब ये चक्रवर्ती हुए । इनकी छियानवें हजार रानियाँ थी । अठारह कोटि घोड़े, चौरासी लाख हाथी और रथ, निन्यानवें हजार द्रोण अड़तालीस हजार पत्तन, सोलह हजार खेट, छियानवें कोटि ग्राम आदि इनका अपार वैभव था । शरद्-ऋतु के मेघों का अकस्मात् विलय देखकर इन्हें आत्मबोध हुआ । इन्होंने अपने पुत्र अरविंद को राज्य दे दिया और वैजयंती नाम की शिविका में बैठकर ये सहेतुक वन में गये । वहाँ षष्टोपवास पूर्वक मंगसिर शुक्ला दशमी के दिन रेवती नक्षत्र में संध्या के समय एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए । दीक्षित होते ही इन्हें मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हुआ । इसके पश्चात् चक्रपुर नगर में आयोजित नृप के यहाँ इन्होंने आहार लिया । सोलह वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहने के बाद दीक्षावन में कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन रेवती नक्षत्र में सायंकाल के समय आद्य वृक्ष के नीचे ये केवली हुए । इनके संघ में कुंभार्य आदि तीस गणधर, पचास हजार मुनि, साठ हजार आर्यिकाएँ, एक लाख साठ हजार श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं । एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदाचल आये । यहाँ प्रतिमायोग धारण कर एक हजार मुनियों के साथ चैत्र कृष्णा अमावस्या के दिन रेवती नक्षत्र में रात्रि के पूर्व-भाग में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । इन्होंने क्षेमपुर नगर के राजा धनपति की पर्याय में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । इसके बाद ये अहमिंद्र हुए और वहाँ से चयकर राजा सुदर्शन के पुत्र हुए ।
महापुराण 2.132-134, 65.14-50, पद्मपुराण - 5.215,पद्मपुराण - 5.223, 20.14-121, हरिवंशपुराण 1.20, 45.22, 60.154-190, 341-349, 507, पांडवपुराण 7.2-35, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101-109
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