चूलिका
From जैनकोष
- पर्वत के ऊपर क्षुद्र पर्वत सरीखी चीटी; Top (ज.प./प्र.१०६);
- दृष्टिप्रवाद अंग का ५वाँ भेद– देखें - श्रुतज्ञान / III ।
- ध.७/२,११,१/५७५/७ ण च एसो णियमो सव्वाणिओगद्दारसूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम, किंतु एक्केण दोहि सव्वेहिं वा अणिओगद्दारेहिं सूइदत्थाणं विसेसपरूविणा चूलिया णाम=सर्व अनुयोग द्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करने वाली ही चूलिका हो, यह कोई नियम नहीं है, किन्तु एक, दो अथवा सब अनुयोगद्वारों से सूचित अर्थों की विशेष प्ररूपणा करना चूलिका है (ध.११/४,२,६,३६/१४०/११)। स.सा./ता.वृ./३२१ विशेषव्याख्यानं उक्तानुक्तव्याख्यानं, उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानं चेति त्रिधा चूलिकाशब्दस्यार्थो ज्ञातव्य:=विशेष व्याख्यान, उक्त या अनुक्त व्याख्या अथवा उक्तानुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान (Summary), ऐसे तीन प्रकार चूलिका शब्द का अर्थ जानना चाहिए। (गो.क./जी.प्र./३९८/५६३/७); (द्र.सं./टी./अधिकार २ की चूलिका पृ.८०/३)।