निस्तरण
From जैनकोष
भ.आ./वि./२/१४/२१ भवान्तरप्रापणं दर्शनादीनां निस्तरणम् । =अन्य भव में सम्यग्दर्शनादिकों को पहुँचाना अर्थात् आमरण निर्दोष पालन करना, जिससे कि वे अन्य जन्म में भी अपने साथ आ सकें।
अन.ध./१/९६/१०४ निस्तीर्णस्तु स्थिरमपि तटप्रापणं कृच्छ्रपाते। =परीषह तथा उपसर्गों के उपस्थित रहने पर भी उनसे चलायमान न होकर इनके अंत तक पहुँचा देने को अर्थात् क्षोभ रहित होकर मरणान्त पहुँचा देने को निस्तरण कहते हैं।