श्वेताम्बर आम्नाय का प्राकृत गाथाबद्ध यह विशालकाय ग्रन्थ क्षमाश्रमण जिनभद्र गणी ने वि.स.६५० (ई.५९३) में पूरा किया था। (देखें - परिशिष्ट )।
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