परलोक
From जैनकोष
प.प्र./ती./110/103/4 पर उत्कृष्टो वीतरागचिदानन्दैकस्वभाव आत्मा तस्य लोकोऽवलोकनं निर्विकल्पसमाधौ वानुभवनमिति परलोकशब्दस्यार्थः, अथवा लोक्यन्ते दृश्यन्ते जीवादिपदार्थाः यस्मिन् परमात्मस्वरूपे यस्य केवलज्ञानेन वा स भवति लोकः, परश्चासौ लोकश्च परलोकः व्यवहारेण पुनः स्वर्गापवर्गलक्षणः परलोको भण्यते। =
- पर अर्थात् उत्कृष्ट चिदानन्द शुद्ध स्वभाव आत्मा उसका लोक अर्थात् अवलोकन निर्विकल्पसमाधि में अनुभवना यह परलोक है।
- अथवा जिसके परमात्म स्वरूप में या केवलज्ञान में जीवादि पदार्थ देखे जावें, इसलिए उस परमात्मा का नाम परलोक है।
- अथवा व्यवहार नयकर स्वर्गमोक्ष को परलोक कहते हैं।
- स्वर्ग और मोक्ष का कारण भगवान् का धर्म है, इसलिए केवली भगवान् को मोक्ष कहते हैं।